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25 km की दूरी पर विक्रम लैंडर, चांद की सतह पर जल्द ही उतरेगा भारत

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अपने ऐतिहासिक मिशन चंद्रयान-3 पर नए अपडेट जारी किए हैं क्योंकि मिशन धीरे-धीरे चंद्रमा के करीब आ रहा है। 23 अगस्त को चंद्रयान-3 अपना पहला सॉफ्ट-लैंडिंग प्रयास चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में करेगा। वर्तमान में सफल डीबूस्टिंग के बाद चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल (विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर) ने अपनी कक्षा को 113 km x 157 km कर दिया है। बता दें कि 14 जुलाई को लॉन्च किया गया चंद्रयान-3 एक अनुवर्ती मिशन है जो चंद्रयान-2 की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग और घूमने की क्षमता दिखाता है।

चंद्रयान-3 की डीबूस्टिंग हुई सफल

इसरो के चंद्रयान-3 ने अपनी अंतिम डीबूस्टिंग सफलतापूर्वक पूरी की है। दूसरे और अंतिम डीबूस्टिंग प्रक्रिया ने एलएम कक्षा को 25 km x 134 km तक सफलतापूर्वक कम किया है। आंतरिक जांच से गुजरने के बाद मॉड्यूल को उचित लैंडिंग स्थल पर सूर्योदय का इंतजार करना होगा। 23 अगस्त, 2023 को लगभग 17:45 बजे पावर डिसेंट शुरू होने की उम्मीद है।

रूस का लूना 25 मून मिशन क्या हो सकता है फेल

रूस की राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस (ROSKOSMOS) ने बताया कि शनिवार को रूस का लूना-25 अंतरिक्ष यान अपनी पूर्व-लैंडिंग कक्षा में स्थानांतरित होने की तैयारी करते हुए एक ‘असामान्य स्थिति’ का सामना करना पड़ा। 21 अगस्त को रूसी अंतरिक्ष यानी इसरो के चंद्रयान-3 को 23 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारने की उम्मीद है।

2019 में भी चंद्रयान-2 को 100 किलोमीटर की गोलाकार ऑर्बिट में डालने की चर्चा हुई थी। लेकिन तय योजना पूरी तरह से काम नहीं करेगी। चंद्रयान-2 की अंतिम ऑर्बिट 119 km x 127 km थी, जो उड़ान से पहले थी। यानी ऑर्बिट में छोटा सा फर्क रहता है। इस अंतर से कोई समस्या नहीं होगी।

जब विक्रम लैंडर को 24 या 30 किलोमीटर की ऑर्बिट मिल जाएगी, तब इसरो का सबसे कठिन चरण शुरू होगा यानी सॉफ्ट लैंडिंग। चांद से 30 km की दूरी पर आने के बाद विक्रम की गति कम हो जाती है। उसके लिए सही स्थान खोजना और सही समय पर लैंडिंग करना, यह काम बहुत जटिल और मुश्किल होने वाला है।

रिपोर्ट- नितिशा तावरा

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