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नगालैंड हिंसा: गृह मंत्री के संसद में माफी के बाद बीजेपी प्रवक्ता ने सेना का किया बचाव, TMC ने कहा- AFSPA पर रुख स्पष्ट करें सरकार

नई दिल्ली: नगालैंड हिंसा के बाद सरकार और सेना के बचाव में कई लोग खड़े हो गए हैं। हांलाकि गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में इस घटना को लेकर माफी मांगी है। संसद में अमित शाह ने कहा कि गलत पहचान के कारण ये हादसा हुआ जिसके कारण 13 लोगों की जान चली गई। शाह ने संसद में दोबारा ऐसी घटना न दोहराए जाने का आश्वासन दिया।

ये तो हुई सरकार के औपचारिक बयान की बात लेकिन बीजेपी के कई प्रवक्ता इस घटना पर सेना को परोक्ष रुप से बचाने की कोशिश कर रहे हैं। मंगलवार को बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कहा, “यह जो सैनिक होते हैं ये जब डिस्टर्बड एरिया में जाते हैं जहां सामान्य परिस्थितियां नहीं होती हैं वहां पर उनको कुछ विशेष अधिकार दिए जाते हैं ऐसा नहीं है कि सैनिकों को हम धकेल दें और उनकी मौत हो जाए तो हम कहें नहीं ये ठीक है मानव अधिकार सैनिकों के भी हैं और आम जनता के भी हैं।”

नगालैंड के मोन इलाके में इस घटना के बाद अशांति की स्थिति बनी रही, कई जगहों पर स्थानीय नागरिकों द्वारा आगजनी भी की गई। इस घटना के बाद मंगलवार को TMC ने गृह मंत्री अमित शाह से मिलने का समय मांगा है। इसके साथ ही TMC ने सरकार से AFSPA पर रुख स्पष्ट करने की मांग भी की है।

क्या है AFSPA?  

आजादी के बाद पूर्वोत्तर राज्यों में बढ़ रहे अलगाववाद, हिंसा और विदेशी आक्रमणों से बचाव के लिए 1958 में AFSPA कानून लागू किया गया था। AFSPA यानि सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम, इसके तहत सेना को किसी इलाके में जाकर ऑपरेशन करने के लिए विशेष अधिकार होते हैं। 1958 में इस कानून को अध्यादेश के रुप में लाया गया था जो बाद में जाकर कानून बना।

सबसे शुरुआत में मणिपुर और असम में AFSPA लगाया गया था। बाद में परिस्थितियों के अनुसार इसे कई राज्यों में लगाया और हटाया गया।

अलग-अलग धार्मिक, नस्लीय, भाषा, क्षेत्रीय समूहों, जातियों, समुदायों के बीच मतभेदों या विवादों के चलते राज्य या केंद्र सरकार राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर किसी राज्य या क्षेत्र को अशांत घोषित कर वहाँ केंद्रीय सुरक्षा बलों को तैनात करती है।

अशांत क्षेत्र (विशेष न्यायालय) अधिनियम, 1976 के मुताबिक, एक बार अशांत घोषित होने पर क्षेत्र में न्यूनतम तीन माह के लिए AFSPA लागू रहती है।

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