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“लोकसभा उपाध्यक्ष की कुर्सी फिर खाली: क्या लोकतंत्र पर मंडरा रहा है खतरा?”

Mallikarjun Kharge : राज्यसभा में हाल ही में विपक्ष के नेता और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर लोकसभा में उपाध्यक्ष की नियुक्ति की मांग की है. इस मुद्दे को लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय बताया जा रहा है. भारत के संविधान में लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की नियुक्ति का स्पष्ट प्रावधान है. मालूम हो कि उपाध्यक्ष का काम अध्यक्ष की अनुपस्थिति में कार्यवाही संचालित करना ही नही, बल्कि वह पूरे सदन का एक निष्पक्ष प्रतिनिधि भी होता है.

क्यों जरूरी है लोकसभा उपाध्यक्ष?

दरअसल लोकसभा उपाध्यक्ष का पद लोकतंत्र के संतुलन के लिए बहुत जरूरी होता है. बीते समय से ही इस पद पर विपक्ष के किसी वरिष्ठ सांसद की नियुक्ति की जाती है. इससे सभी पक्षों को सदन में प्रतिनिधित्व मिलता है और चर्चा व बहस में संतुलन बना रहता है. वहीं 17वी लोकसभा (2019–2024) में उपाध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हुई थी. दूसरी और अब 18वी लोकसभा का गठन हो चुका है, बवाजूद इसके यह पद खाली है, यह पहली बार है जब लगातार दो लोकसभा कार्यकालों तक यह संवैधानिक पद रिक्त रहा है.

संवैधानिक और लोकतांत्रिक दृष्टिकोण से नुकसान

बता दें कि उपाध्यक्ष की नियुक्ति को टालना संविधान की भावना के खिलाफ माना जाता है. यह न केवल एक परंपरा का उल्लंघन है, बल्कि लोकतंत्र की नींव को कमजोर करने जैसा है. संसद में सभी पक्षों की निष्पक्ष भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए उपाध्यक्ष की भूमिका बेहद अहम मानी जाती है.

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अब समय है निर्णय का

हालांकि इस मुद्दे को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गंभीरता से विचार करना चाहिए. लोकतंत्र को मज़बूत बनाए रखने के लिए लोकसभा उपाध्यक्ष की नियुक्ति तुरंत होनी जरूरी है. यह कदम न केवल संविधान का सम्मान माना जाएगा, बल्कि लोकतंत्र की गरिमा को भी बनाए रखेगा. लोकसभा उपाध्यक्ष का पद कोई औपचारिकता नहीं बल्कि लोकतांत्रिक प्रणाली का एक अनिवार्य हिस्सा है. अब समय आ चुका है कि इस पद को बरकरार कर संसद में संतुलन और निष्पक्षता की मिसाल पेश की जाए.

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