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विश्वविद्यालयों में जातिगत भेदभाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त

Delhi : विश्वविद्यालयों में जातिगत भेदभाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर शुक्रवार (3 जनवरी) को सुनवाई हुई। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए UGC से शिकायतों का डाटा मांगा है। साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा है कि उच्च शिक्षण संस्थानों में जातिगत मामले काफी गंभीर हैं। इसके अलवा सुप्रीम कोर्ट ने विश्वविद्यालयों के लिए जातिगत मुद्दों पर बने नियमों को लागू करने का भी आदेश दिया है।

वहीं सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सुनवाई के दौरान कहा कि वो मामले की संवेदनशीलता से अच्छी तरह से परिचित है। ऐसे में इस तरह की शिकायतों को काफी गंभीरता से निदान करने की जरूरत है और वह ऐसा ही करेगी।

जातिगत भेदभाव से 20 सालों में IIT में हुईं 115 आत्महत्याएं

इस मामले पर सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच को बताया गया कि 2004-24 के बीच अकेले आईआईटी में 115 आत्महत्याएं हुई हैं। जिस पर जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की कि अदालत इस मामले की संवेदनशीलता से परिचित है और 2012 के नियमों को वास्तविकता में बदलने के लिए एक तंत्र खोजने हेतु समय-समय पर इसकी सुनवाई शुरू करेगा।

SC ने UGC से मांगी शिकायतों और कार्रवाई की रिपोर्ट

पीठ ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को निर्देश दिया कि वह समान अवसर प्रकोष्ठों की स्थापना के संबंध में विश्वविद्यालयों (केन्द्रीय/राज्य/निजी/मान्य) से आंकड़े एकत्र कर प्रस्तुत करे तथा यूजीसी (उच्च शिक्षण संस्थानों में समानता को बढ़ावा)  विनियम, 2012 के तहत प्राप्त शिकायतों की कुल संख्या के साथ-साथ की गई कार्रवाई की रिपोर्ट भी प्रस्तुत करे।

दरअसल, रोहित वेमुला और पायल तड़वी की मां की ओर से यह याचिका दायर की गई है। इन दोनों की आत्महत्या के पीछे शैक्षणिक संस्थानो में जातिगत भेदभाव को जिम्मेदार बताया गया था। याचिका में शैक्षणिक संस्थानों में जातिगत भेदभाव खत्म करने के लिए सशक्त और कारगर मैकेनिज्म बनाये जाने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि ये घटनाएं संविधान की धारा 14, धारा 15, धारा 16, धारा 17 और धारा 21 के तहत प्रदत समता, समानता, भेदभाव के खिलाफ अधिकार, छुआछूत का अंत और जीवन के अधिकार का उल्लंघन करती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र और यूजीसी को नोटिस भी जारी कर चुका है।

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