
Delhi High Court : किसान आंदोलन को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने उपराज्यपाल द्वारा नियुक्त सरकारी वकीलों के खिलाफ याचिका वापस लेने की अनुमति दी है जिसके बाद दिल्ली दंगों के मामलों में बहस के लिए उपराज्यपाल ने अपने पसंद के सरकारी नियुक्ति के खिलाफ दायर दिल्ली सरकार की याचिका को कोर्ट ने वापस लेने की अनुमति दी है. दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस तुषार राव गेडेला और डीके उपाध्याय की बेंच ने 2021 में दायर हुई याचिका को वापस लेने वाली मांग पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है कि जिस समय आम आदमी पार्टी की सरकार थी उस वक्त इस याचिका को दायर किया गया था. जिसके बाद सत्ता बदली और बीजेपी सरकार ने कोर्ट से याचिका को वापस लेने का कोर्ट से निवेदन किया, जिसके चलते कोर्ट ने इसे मंजूरी दे थी. बावाजूद इसके कोर्ट ने आदेश जारी करते हुए कहा कि याचिका वापस लिए जानें के कारण खारिज की जाती है.
उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच टकराव
दरअसल मामले की सुनवाई के चलते उपराज्यपाल की ओर से पेश वकील संजय जैन ने दिल्ली सरकार द्वारा याचिका वापस लेने का विरोध नही किया. जिसके बाद कोर्ट ने अगस्त 2021 में याचिका पर नोटिस जारी किया था. इस नोटिस में दिल्ली पुलिस की सिफारिशों को खारिज कर दिया था और अपनी पसंद का एक पैनल नियुक्त किया गया.
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अनुच्छेद 239-AA 4 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल
इतना ही नहीं बाद में उपराज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद 239-AA 4 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रपति के फैसले के लंबित रहने तक उक्त मामलों का संचालन करने किया और दिल्ली पुलिस ने चुने हुए अधिवक्ताओं को. एसएसपी के रूप में नियुक्त किया. वहीं दिल्ली सरकार ने दायर याचिका में कहा कि एसपीपी की नियुक्ति एक नियमित मामला है, न कि कोई असाधारण मामला है जिसके लिए राष्ट्रपति को संदर्भित किया जा सकें.
हालांकि इस मामले को लेकर आरोप लगाया गया कि उप राज्यपाल नियमित रूप से एसपीपी की नियुक्ति में हस्तक्षेप कर रहे हैं जो निर्वार्चित सरकार को दिन-ब-दिन कमजोर कर रहा है. यह अनुच्छेद 239 AA के खिलाफ है. दिल्ली पुलिस द्वारा एसपीपी की नियुक्ति एसपीपी की स्वतंत्रता पर उल्लंघन करती है.
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