
Babri Masjid Controversy : पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में TMC से निलंबित विधायक हमायूं कबीर द्वारा ‘बाबरी मस्जिद’ नाम से मस्जिद की नीव रखने की घोषणा के बाद राजनीति माहौल गरम हो गया है. इस मुद्दे पर इंडियन नेशनल लीग (INL) के अध्यक्ष मोहम्मद सुलेमान साहब ने कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा कि इस नाम का उपयोग करना उकसाने वाला कदम है और यह मुसलमानों के हित में भी नहीं आता. उन्होंने सरकार, न्यायपालिका और मौजूदा राजनीतिक स्थिति पर भी खुलकर अपनी बात रखी.
बाबरी नाम पर सुलेमान की कड़ी आपत्ति
मोहम्मद सुलेमान ने तीखी आपत्ति जताते हुए कहा कि टीएमसी विधायक हमायूं कबीर बिना समझे ऐसे बयान दे रहे हैं, उन्होंने स्पष्ट किया कि इस्लाम में किसी “बाबरी मस्जिद” या “हुमायूं मस्जिद” जैसी राजनीतिक उपमाओं का कोई स्थान नहीं है. सुलेमान के अनुसार, उत्तर प्रदेश में स्थित एक मस्जिद को लेकर मुसलमानों ने पूरी लड़ाई कानूनी दायरों में रहकर लड़ी, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव की मिलीभगत से बाबरी मस्जिद गिरा दी गई, उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि न्यायपालिका के सहयोग से उस जमीन को औपचारिक रूप से मंदिर निर्माण के लिए सौंप दिया गया, जो न्याय और संतुलन की भावना के विपरीत है.
बाबरी नाम के इस्तेमाल पर सुलेमान का विरोध
उन्होंने आगे कहा कि हुमायूं कबीर को समझना चाहिए कि बिना सोचे समझे और बाबरी मस्जिद के नाम का इस्तेमाल कर उत्तेजना फैलाने से मुसलमानों का कुछ नहीं होने वाला. यदि उन्हें मस्जिद बनानी है तो वे अपने क्षेत्र जहां वे विधायक रहे हैं. वहीं पर धार्मिक स्थल का निर्माण कर सकते हैं, लेकिन उसे “बाबरी मस्जिद” नाम देना अनुचित और बुद्धिमानी के खिलाफ है.
बाबरी नाम से भावनाएं भड़काना गलत
मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि बाबरी मस्जिद का मामला अब अतीत बन चुका है और मुस्लिम समुदाय अदालत के फैसले को पहले ही स्वीकार कर चुका है. ऐसे में इस नाम का इस्तेमाल कर लोगों की भावनाएं भड़काने की कोशिश बिल्कुल नहीं होनी चाहिए.
अनावश्यक उत्तेजना पर सरकार कार्रवाई करे
उन्होंने कहा कि सरकार को उन लोगों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए, जो बेवजह उत्तेजक माहौल पैदा करने वाले कदम उठाते हैं, क्योंकि ऐसे प्रयास पूरी तरह अनावश्यक हैं, उन्होंने कहा कि मंदिर का निर्माण हो चुका है और मुस्लिम समुदाय ने पूरे मामले में हुए अन्याय को चुपचाप सहन किया है. इसके बावजूद मुसलमान कानून का सम्मान करते हैं और न तो कानून तोड़ने की सोच रखते हैं और न ही उसे अपने हाथ में लेने का इरादा रखते हैं.
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