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जब दलाई लामा को शरण देने पर हुआ भारत-चीन युद्ध, संसद में नेहरु ने मानी थी गलती

डि़जिटल डेस्क: 20 अक्टूबर 1962 । आज ही के दिन भारत और चीन के बीच पहली लड़ाई शुरु हुई थी। 1959 के तिब्बती विद्रोह के बाद  जब भारत ने दलाई लामा को शरण दी थी उसके बाद से चीन का रुख भारत की तरफ आक्रमक हो गया था।

भारत ने 1960 से चीनी सैन्य गश्त और रसद में बाधा डालने के लिए एक रक्षात्मक नीति शुरूआत की थी, जिसमें उसने मैकमोहन रेखा के कई उत्तर सहित सीमा पर चौकियों को रखा, वास्तविक नियंत्रण रेखा के पूर्वी भाग को 1959 में चीनी प्रीमियर झोउ एनलाई द्वारा घोषित किया गया था।

राष्ट्रपति के आरोप

उस समय भारत के राष्ट्रपति थे सर्वपल्ली राधाकृष्णन और रक्षा मंत्री के तौर पर वी के मेनन थे। इस युद्ध के में भारत की करारी हार के बाद राधाकृष्णन ने अपनी सरकार पर गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने चीन पर आसानी से विश्वास करने और वास्तविकताओं की अनदेखी के लिए सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया।

इस युद्ध का ठीकरा दो लोगों पर सबसे ज्यादा फूटा, एक थे भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु और दूसरे व्यक्ति थे तत्कालीन रक्षा मंत्री वी के मेनन। जवाहर लाल नेहरू ने संसद में गलती स्वीकारते हुए कहा था, “हम आधुनिक दुनिया की सच्चाई से दूर हो गए थे और हम एक बनावटी माहौल में रह रहे थे, जिसे हमने ही तैयार किया था। दरअसल नेहरु और लगभग सभी लोग इस बात से सहमत थे कि चीनी सीमा पर आपसी झड़प से ज्यादा कुछ नही हो सकता। इस गलती के कारण 20,000 भारतीय सेना को 80,000 चीनी सेना से युद्ध करना पड़ा।

बता दें इस युद्ध के दौरान दोनों देशों के द्वारा नौसेना या वायु सेना का प्रयोग नही किया गया था।  भारत और चीन दोनों के कई सैनिक जमा देने वाली ठण्ड से मर गए। युद्ध के दौरान चीनी सैनिकों ने भारत के टेलिफोन लाइन को भी काट दिया था जिसके बाद  भारतीय सैनिकों के लिए अपने बेस सेंटर से संपर्क करना मुश्किल हो गया था।

1962 का युद्ध

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