
Sanatana Dharma: तमिलनाडु के मंत्री और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) नेता उदयनिधि स्टालिन ने गुरुवार, 23 नवंबर को मद्रास उच्च न्यायालय को बताया कि सनातन धर्म पर उनका बयान हिंदू धर्म या हिंदू जीवन शैली के खिलाफ नहीं था, बल्कि केवल जाति आधारित भेदभावपूर्ण प्रथाओं को समाप्त करने का आह्वान था। स्टालिन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील पी विल्सन ने एकल-न्यायाधीश न्यायमूर्ति अनिता सुमंत को बताया कि डीएमके को तमिलनाडु के लोगों ने सत्ता में चुना था, जिनमें से अधिकांश हिंदू थे। विल्सन ने तर्क दिया, “राज्य के अधिकांश लोग और यहां तक कि डीएमके के अधिकांश कैडर हिंदू थे और उन्होंने ही तमिलनाडु में डीएमके सरकार को चुना था।”
Sanatana Dharma: एक सम्मेलन में दिया था बयान
बता दें कि 2 सितंबर को चेन्नई में तमिलनाडु प्रोग्रेसिव राइटर्स आर्टिस्ट एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में उदयनिधि स्टालिन ने कहा था कि कुछ चीजों का न केवल विरोध किया जाना चाहिए बल्कि उन्हें खत्म किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा था, “जैसे डेंगू, मच्छर, मलेरिया या कोरोना वायरस को खत्म करने की जरूरत है, वैसे ही हमें सनातन को खत्म करना होगा।”
बयान के बाद शुरू हुआ था विवाद
मंत्री के बयान के बाद दक्षिणपंथी संगठन हिंदू मुन्नानी के पदाधिकारियों ने स्टालिन की टिप्पणियों पर आपत्ति जताते हुए उच्च न्यायालय के समक्ष तीन रिट याचिकाएं दायर कीं। सुनवाई के दौरान वकील विल्सन ने यह भी दावा किया कि स्टालिन, डीएमके सदस्य पीके शेखर बाबू और पार्टी सांसद ए राजा के खिलाफ दायर रिट याचिका राजनीति से प्रेरित थी।
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