
इस्लामाबाद: पाकिस्तान को परमाणु बम देने वाले डॉक्टर अब्दुल क़दीर ख़ान का निधन हो गया है। वो लंबे वक्त से बीमार थे। ख़बरों के मुताबिक क़दीर का स्वास्थ्य बिगड़ने पर उन्हें स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां रविवार सुबह करीब 8:45 बजे डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। डॉ. क़दीर 85 वर्ष के थे।
डॉ अब्दुल क़दीर ख़ान का जन्म अविभाजित भारत यानी की देश बंटवारे से पहले भोपाल में साल 1935 में हुआ था। लेकिन बंटवारे के बाद सह परिवार वो पाकिस्तान आ गए थे। और अपने देश को उन्होंने बुलंदियों का नया आयाम दिया। उन्होंने पाकिस्तान को न्यूक्लियर पॉवर बनाया। इसी कारण से उन्हें परमाणु कार्यक्रम का जनक भी कहा जाता है।
डॉ. ख़ान पिछले काफ़ी समय से बीमार थे और लंबे वक्त तक अस्पताल में भर्ती भी थे। बीमारी के वक्त इमरान ख़ान सरकार के विरूध उनकी नाराज़गी भी साफ़तौर पर सामने आई थी। जब उन्होंने कहा था कि इमरान सरकार की ओर से कोई उनकी सेहत के मालूमात करने नहीं आया था।
शाही वैज्ञानिक
किसी वैज्ञानिक को सुरक्षाबलों की कड़ी सुरक्षा के बीच ख़ास गाड़ियों के काफ़िले में देखना कोई आम सी बात नहीं है। वो भी तब जब ऐसी सुरक्षा व्यवस्था देश के राष्ट्रपति के लिए तैनात की गई सुरक्षा व्यवस्था से ज्यादा हो।
लेकिन यहां बात थी डॉ. अब्दुल क़दीर ख़ान की। जिन्हें ए.के. ख़ान के नाम से भी जाना जाता है और ये कोई आम वैज्ञानिक नहीं हैं।
पेशे से इंजीनियर डॉ. ख़ान एक दशक से भी ज्यादा वक़्त तक परमाणु बम बनाने की तकनीक से लेकर मिसाइल बनाने के लिए यूरेनियम एनरिचमेन्ट, मिसाइल में इस्तेमाल उपकरण और पुर्ज़ों के व्यापार में काम कर चुके थे।
यूरोप में सालों तक परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में पढ़ाई और काम कर चुके डॉ. ख़ान को मिसाइल बनाने का तरीक़ा भी मालूम था।
डॉ. ख़ान ने परमाणु तकनीक की जानकारी और अपनी सेवाएं पाकिस्तान, लीबिया, उत्तर कोरिया और ईरान को दीं थी। इन सभी देशों के परमाणु कार्यक्रम में वो एक अहम नाम बनकर उभरे थे लेकिन सबसे ज्यादा नाम उनका पाकिस्तान में हुआ था।
पाकिस्तान में उन्हें काफ़ी शोहरत मिली। 1980 और 1990 के दशक में डॉ. ख़ान इस्लामाबाद के सबसे ताक़तवर व्यक्ति माने जाते थे।
स्कूलों की दीवारों, सड़कों-गलियों में उनके पोस्टर और तस्वीरें दिखती थीं। उन्हें 1996 और 1999 में दो बार पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज़ से भी नवाज़ा गया।