
Gond Community : भारत के प्राचीन समुदाय में से गोड एक प्रमुख समुदाय हैं। यह जाति उत्तर प्रदेश में भदोही, सोनभद्र, देवरिया, वाराणसी, जौनपुर, आजमगढ़, चंदौली, मीरजपुर, गाज़ीपुर, मऊ, बलिया, आदि जनपदों में निवास करती है। 14वीं तथा 17वीं शताब्दी राजगौंड राजवंशों के शासन स्थापित गोंडों का प्रदेश गोंडवाना के नाम से भी प्रसिद्ध है। मगर, गोंडों की कुछ आबादी पूरे मध्यप्रदेश में फैली हुई है। उड़ीसा, आंध्र और बिहार प्रत्येक राज्यों में 2 से 4 लाख तक गोंड रहते हैं। मोदियाल गोंड जैसे समूह आज भी हैं। जिनकी जातीय भाषा गोंडी है जो की द्रविड़ परिवार के है।
अब यदि गोड की बड़ी उपजाति मिलती हैं, तो वे सामान्य किसान और भूमिधर के रूप में पाए जाते हैं, जैसे कि राजगोंड, रघुवल, डडवे और कतुल्या गोंड। इसके अलावा दूसरे वे हैं जो मिले जुले गाँवों में पशु चराने, भाड़ झोंकने, खेती मजदूरों और पालकी ढोने जैसे सेवक जातियों के तौर पर काम करते हैं।
गोड है खेतिहर समुदाय
गोंड समुदाय खेतिहर हैं और पीढ़ियों से परंपरा दहिया खेती करते आ रहे हैं। यह खेती जंगल को जलाकर उसकी राख में की जाती है और जब उस स्थान का उपजाऊपन और जंगल समाप्त हो जाता है, तब यह समुदाय उस स्थान को छोड़ दूसरे स्थान को चुन लेते हैं। मगर सरकारी निषेध की वजह से अब यह प्रथा बहुत कम हो गई है। गाँव की पूरी ज़मीन समुदाय की सपत्ति होती है और खेती के लिये व्यक्तिगत रूप से परिवरों की आवश्यकतानुसार के अनुसार सब में बाटी जाती है। दहिया खेती पर रोक लगने की वजह से और आबादी के दबाव के कारण इनमें से अनेक समूहों को बाहरी क्षेत्रों और मैदानों की ओर पलायन करना पड़ा। यह समुदाय वनप्रिय होने के कारण शुरू से खेती की उपजाऊ जमीन की ओर आकृष्ट नहीं हो सके। धीरे धीरे बाहरी लोगों ने इनके छेत्रों की कृषियोग्य भूमि पर अपसी सहमति से अपना अधिकार कर लिया।