
Declaration of Sibin C : पंजाब के मुख्य निर्वाचन अधिकारी सिबिन सी ने बताया कि अब चुनावों के बाद आंकड़े जुटाने और रिपोर्ट बनाने के लिए एक नई और तकनीकी रूप से बेहतर प्रणाली शुरू की गई है. इस प्रणाली को मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार और अन्य निर्वाचन आयुक्तों के नेतृत्व में तैयार किया गया है. पहले यह काम मैन्युअल तरीके से होता था, जिससे काफी समय लगता था और रिपोर्ट बनने में देरी होती थी. अब नई तकनीक और ऑटोमेशन की मदद से यह काम जल्दी और सही तरीके से हो सकेगा.
चुनाव डेटा इंडेक्स कार्ड का परिचय
गौरतलब है कि इंडेक्स कार्ड चुनावों के बाद की आंकड़ा रिपोर्टिंग के लिए एक प्रारूप है, जिसे भारतीय चुनाव आयोग द्वारा शोधकर्ताओं, शिक्षा विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं, पत्रकारों और आम जनता सहित सभी हितधारकों को निर्वाचन क्षेत्र स्तर पर चुनाव संबंधी आंकड़ों की सुगम पहुंच सुनिश्चित करने के लिए विकसित किया गया है. इस इंडेक्स कार्ड में उम्मीदवारों, मतदाताओं, डाले गए मतों, गिने गए मतों, पार्टीवार और उम्मीदवारवार मतों की हिस्सेदारी, लिंग आधारित मतदान रुझान, क्षेत्रीय विविधताएं और राजनीतिक दलों के प्रदर्शन जैसी श्रेणियों में आंकड़ों को साझा किया जाता है.
चुनावों की रिपोर्टिंग का आसान तरीका
यह इंडेक्स कार्ड लोकसभा चुनावों के लिए लगभग 35 और विधानसभा चुनावों के लिए 14 तरह की रिपोर्ट बनाता है। इन रिपोर्टों में राज्य, संसदीय या विधानसभा क्षेत्र के अनुसार मतदाताओं की जानकारी, मतदान केंद्रों की संख्या, वोट देने का प्रतिशत, महिला मतदाताओं की भागीदारी, पार्टियों का प्रदर्शन, जीतने वाले उम्मीदवारों का विश्लेषण, क्षेत्रवार नतीजे और छोटी-छोटी रिपोर्टें शामिल होती हैं.
धीमी और जटिल थी चुनाव डेटा रिपोर्टिंग प्रक्रिया
ये आंकड़े चुनावों पर गहन शोध के लिए उपयोगी होते हैं और लोकतांत्रिक विमर्श को भी सशक्त बनाते हैं। हालांकि, ये आंकड़ा रिपोर्टें केवल शैक्षणिक और शोध उद्देश्यों के लिए हैं और यह इंडेक्स कार्ड पर आधारित द्वितीयक आंकड़ों पर आधारित होती हैं, जबकि वास्तविक और अंतिम आंकड़े संबंधित रिटर्निंग अधिकारियों द्वारा दिए गए विधिक प्रपत्रों में होते हैं.
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पूर्व में यह जानकारी निर्वाचन क्षेत्र स्तर पर विभिन्न नियमों के तहत निर्धारित प्रपत्रों में भरकर, फिजिकल इंडेक्स कार्डों के माध्यम से ऑनलाइन सिस्टम में दर्ज कर आंकड़ा रिपोर्टें तैयार की जाती थीं. यह मैनुअल और बहु-स्तरीय प्रक्रिया समय लेने वाली होती थी और अक्सर डेटा की उपलब्धता और साझाकरण में देरी का कारण बनती थी.
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