
संतोष कुमार सुमन – संविधान का अनुच्छेद 44 देश में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) लागू करने की आजादी केंद्र सरकार को देता है। लेकिन इसे देश में लागू करने को लेकर बहस छिड़ी हुई है। राज्य सरकारें अपने यहां कॉमन सिविल कोड लागू करने की बात करती रही है। लेकिन इस मामले में जानकारों को कहना है कि समान नागरिक संहिता को केवल संसद के जरिए ही लागू किया जा सकता है।
भले ही कानून लागू करने की शक्ति केंद्र और राज्य सरकार दोनों के पास है, लेकिन पर्सनल लॉ के मामले में राज्य सरकारों के हाथ बंधे हुए हैं। इसलिए यदि कोई राज्य सरकार इसे लागू करने की कोशिश भी करती है तो उसे अदालत में चुनौती मिल सकती है।
हालांकि इस मामले में गोवा अपवाद है। गोवा में पहले से ही समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) लागू है। 1961 से ही गोवा में पुर्तगाल सिविल कोड 1867 लागू है। वहां पर समान नागरिक संहिता भारत में शामिल होने से पहले से ही लागू है।
समान नागरिक संहिता के लागू होने से क्या होंगे बदलाव
- सभी धर्मों के लिए एक ही कानून होगा। अभी सबके लिए अलग-अलग है।
- हिंदुओं के लिए अलग कानून है और मुस्लिमों, इसाइयों के लिए अलग पर्सनल लॉ।
- इसके लागू होने से सभी धर्मों के लिए एक कानून होगा। यह सभी धर्मों पर समान रूप से लागू होगा।
- अभी हिंदू बिना तलाक के दूसरी शादी नहीं कर सकता। मुस्लिम में तीन शादी करने का अधिकार है। यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने के बाद मुस्लिमों को भी तलाक के बाद ही दूसरी शादी का अधिकार मिलेगा।
- यहां पर धार्मिक भेदभाव नहीं होगा। कॉमन सिविल कोड सिर्फ विवाह, तलाक, प्रॉपर्टी और गोद लेने जैसे मामलों में ही लागू होगा।
कॉमन सिविल कोड लागू करना कठिन क्यों?
देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) को लागू करना इतना आसान नहीं है। इसका विरोध मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ज्यादा करता है। उनका कहना है कि इससे उनकी धार्मिक आजादी छिन जाएगी। हालांकि कॉमन सिविल कोड सिर्फ समाजिक समानता की बात करता है। सभी समुदाय अपने धर्म का पालन कर सकते हैं। यहां पर सिर्फ शादी, तलाक, प्रॉपर्टी इत्यादि मसलों पर ही बात की गई है।
भारत जैसे विविधतापूर्ण और अनेक धर्मों और पंथों को मानने वाले लोग रहते हैं। सब में कई मान्यताएँ प्रचलित है। ऐसे में सबको एक कानून के दायरे में लाना मुश्किल तो नहीं लेकिन कठिन जरूर है।
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