दहेज उत्पीड़न अधिकारी नहीं करते जांच, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने जारी किया सख्त आदेश

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यदि दहेज मामले में आरोपियों को बिना कोई कारण बताए गिरफ्तार किया गया तो पुलिस अधिकारियों पर सत्ता के दुरुपयोग और अदालत की अवमानना का आरोप लगाया जाएगा। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट उस जज के खिलाफ भी कार्रवाई करेगा जिसने बिना कारण बताए हिरासत की अवधि बढ़ा हो।

महत्वपूर्ण फैसलों में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया

हरियाणा, पंजाब और चंडीगढ़ के लिए महत्वपूर्ण फैसलों में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि दहेज उत्पीड़न के मामले में आरोपी को गिरफ्तार करने से पहले जांच अधिकारी को कारण बताना अनिवार्य है। यदि गिरफ्तारी आवश्यक है, तो इसके कारणों को एक चेकलिस्ट पर दर्ज किया जाता है और न्यायाधीश के सामने प्रस्तुत किया जाता है।

न्यायाधीश को इस बात से संतुष्ट होना चाहिए कि हिरासत की अवधि बढ़ाने के लिए पर्याप्त कारण हैं और इन्हें लिखित रूप में दर्ज करना चाहिए। अन्यथा पुलिस अधिकारी व जज पर प्रशासनिक कार्रवाई की जायेगी। एफआईआर में व्यक्ति को गिरफ्तार न करने के कारणों को दो सप्ताह के भीतर जांच न्यायाधीश को सूचित किया जाना चाहिए। केवल एसपी ही लिखित कारणों के साथ इस समय सीमा को बढ़ा सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर हरियाणा

सुप्रीम कोर्ट ने अशफाक आलम बनाम सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर हरियाणा, पंजाब और चंडीगढ़ के लिए दिशा निर्देश जारी किए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में तीनों राज्यों को अर्नेश कुमार बनाम मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने तीनों को निर्देश दिया कि वे सभी पुलिस अधिकारियों को निर्देश जारी करें कि दहेज उत्पीड़न के मामलों में गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए। यदि गिरफ़्तारी अनिवार्य है तो गिरफ़्तारी का आवश्यक कारण बताना होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि इन आदेशों का पालन नहीं करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई की जाएगी। साथ ही कोर्ट के आदेश की अवमानना का मामला भी दायर किया जा सकता है। इस आदेश का पालन नहीं करने वाले जजों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई की जायेगी।

यह सात साल से कम की सजा वाले अन्य मामलों पर भी लागू होगा
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि ये निर्देश केवल सीआरपीसी की धारा 498-ए के तहत मामलों तक सीमित नहीं हैं। ये दिशानिर्देश उन सभी अपराधों पर लागू होते हैं जिनके लिए अधिकतम सजा सात साल या उससे कम है। ऐसे में राज्य को सभी पुलिस अधिकारियों को इन निर्देशों की जानकारी देनी होगी।

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