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क्या तालिबान को खड़ा करने के पीछे अमेरिका का हाथ है?

ब्लॉग: कुछ वक्त पहले तक लोकतांत्रिक रहने वाला अफ़ग़ानिस्तान आज तालिबान के कब्जे में है। मुमकिन है कि जल्द ही अफ़ग़ानिस्तान में तालिबानी सरकार हो। हालांकि संयुक्त राष्ट्र से लेकर अमेरिका और दुनिया के बाकी बड़े देशों ने तालिबान को मान्यता देने से इनकार कर दिया है। लेकिन ये इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन इस देश में अपने पैर जमाने में कामयाब होता नज़र आ रहा है।

क्या आप जानते हैं कि आज की तारीख में इतना मजबूत दिखने वाला तालिबान आखिरकार खड़ा कैसे हो पाया है। अमेरिका में ये लोग जंग-ए-आज़ादी की सिपाही कहे जाते थे। लेकिन इन्हें इस्लामिक कट्टपंथी गोरिल्ला लड़ाके कहना ज्यादा बेहतर रहेगा।

अफ़ग़ानिस्तान के स्थानीय गोरिल्ला लड़ाकों ने सालो तक सोवियत संघ के खिलाफ अमेरिका का साथ दिया है। जिसके लिए अमेरिका ने उन्हें हथियार और पैसे मुहैया कराए ताकि उसके दुश्मन सोवियत संघ के मंसूबो को नाकाम किया जा सके।

गोपनीय दस्तावेजों, पत्रकारों से बातचीत या मीडिया में उपलब्ध जानकारी की माने तो अमेरिका सोवियत संघ में कुछ उस तरह के जान-माल का नुकसान चाहता था जैसा हाल उसके खुद के साथ वियतनाम में हुआ था। इसे ऑपरेशन साइक्लोन का नाम दिया गया था। उस वक्त की मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसी CIA ने इस इतिहास का सबसे बड़ा खुफिया ऑपरेशन करार दिया था।

जिसके बाद सोवियत संघ के सैनिकों ने वापसी शुरू कर दी थी। इसके महज 8 साल बाद वर्ष 1996 में अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान ने खुद को काबिज कर देश पर इस्लामिक कट्टरपंथ का निजाम थोप दिया था।

साल 1979 से अफ़ग़ानिस्तान में मुजाहिदीनों की पकड़ तेज़ होने लगी थी। क्योंकि तब के अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर को उनके सलाहकारो ने मुजाहिनीनों की मदद से तत्कालीन अफ़गानी राष्ट्रपति बबरक करमाल के खिलाफ बगावत तेज करवाना चाहते थे।

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