MP चुनाव में BJP को हो सकता है नुकसान, 2018 में नोटा को मिले अधिक वोट
बीजेपी ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में चार कैंडिडेट की लिस्ट जारी की है। यही कारण है कि चौथी लिस्ट अभी भी चर्चा का विषय है। बीजेपी ने अपनी उम्मीदवार सूची में 57 नामों को घोषित किया है, जिनमें से 24 मंत्री हैं और बाकी विधायक हैं। पार्टी ने उन विधायकों को भी वापस से टिकट दे दिया है जिनसे कार्यकर्ता नाराज हैं और जिनके खिलाफ स्थानीय कार्यकर्ताओं में रोष है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2018 के विधानसभा चुनाव से बीजेपी ने शायद कुछ सीखा नहीं है। नाराज वोटर्स ने ‘नोटा’ को जीत-हार के अंतर से अधिक वोट दिए, जिसके परिणामस्वरूप बीजेपी 11 सीटों पर पराजित हो गई।
नोटा को वोट क्यों गए थे वोट
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बीजेपी से नाराज मतदाताओं ने ‘नोटा’ को अपना विकल्प बनाया। मध्य प्रदेश में 230 विधानसभा सीटों में बीजेपी को 109 सीटें और कांग्रेस को 114 सीटें मिली हैं। वहीं बसपा ने दो सीटें जीतीं। समाजवादी पार्टी को एक और निर्दलीय सीट मिली। उस समय, क्षेत्रीय दलों और निर्दलीय विधायकों के सहारे कांग्रेस ने कमलनाथ की सरकार बनाई थी। आंकड़े बताते हैं कि राज्य के मतदाता बीजेपी से बहुत नाराज थे। नोटा इतने वोट नहीं पाता अगर ऐसा नहीं होता। 11 सीटों पर नोटा को सर्वाधिक वोट न मिले होते तो राज्य में कमलनाथ सरकार के बजाय चौथी बार शिवराज सरकार बनती। इसके बावजूद, यह कुछ ही दिनों बाद हुआ। कांग्रेस में विवाद के कारण मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार गिर गई।
कितने लोगों ने दबाया था नोटा पर बटन
बता दें कि 2018 के विधानसभा चुनाव में अधिक नोटा वोटों के कारण कुछ सीटों पर ये परिणाम हुए थे। ब्यावरा में नोटा को 1481 वोट मिले, कांग्रेस को 826 वोट मिले थे। दमोह में पूर्व वित्तमंत्री जयंत मलैया 798 वोटों से हार गए और नोटा को 1299 मत मिले। गुन्नौर में भी 1984 में जीत-हार का अंतर था, लेकिन नोटा को 3734 लोगों ने चुना था। ग्वालियर दक्षिण का निर्णय 121 वोटों से हुआ, लेकिन 1550 मतदाताओं ने नोटा दबाया था। जबलपुर में पूर्व राज्यमंत्री शरद जैन 578 वोटों से हारे थे, वहीं 1209 लोगों ने नोटा को चुना था। जोबट में 2056 वोटों और नोटा में 5139 वोटों से निर्णय हुआ। मंधाता में भी 1236 वोटों से जीत-हार का फैसला हुआ था।
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