
Gonda: प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के माध्यम से गरीब पात्र लाभार्थी को चिन्हित कर योजना के माध्यम से पक्की छत मुहैया कराना सरकार का लक्ष्य है। लेकिन भ्रष्टाचार के चलते वास्तविक योजना के लाभार्थी को लाभ मिलना लोहे के चने चबाने जैसा साबित होता हुआ दिख रहा है। सिस्टम की लापरवाही के कारण आज भी गरीब पात्र लाभार्थी सरकारी अधिकारियों के यहां माथा टेक रहे है। मिट्टी और फूस के आशियानों मे जीवन जीने को मजबूर है।
ना पक्का घर मिला, ना भरण-पोषण का कोई साधन
प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के वास्तविक पात्र लाभार्थी कच्चे मिट्टी व खपरैल से बने हुए घरों में रहने को सालों से मजबूर है। इन गरीब परिवार के पास ना ही इतना पैसा है कि पक्का मकान बनवा सके न ही खेती और न ही कोई नौकरी है। दूसरों के खेतों में किसानी वह मजदूरी करके किसी तरह से अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं। आमदनी का कोई दूसरा जरिया नहीं है।
15 से 20 साल से इसी तरह के कच्चे खपरैल वाले घर में किसी तरह से पॉलिथीन बांधकर गुजर-बसर करते हैं। बरसात के दिनों में तेज तूफान और बारिश से छप्पर उड़ जाते हैं और रात भर जागकर रात गुजारनी पड़ती है छोटे-छोटे बच्चे को भी काफी परेशानियां उठानी पड़ती है।
अधिकारीयों ने दिया जांच का हवाला
आरोप है कि प्रधान ने अपने रिश्तेदारों और करीबियों को जो आपात्र की श्रेणी मे आते हैं उसको 1 नहीं ब्लकि 3 ,3 आवास दिला दिया और लोगों के पास घर भी नहीं है फिर भी नहीं मिला फर्जी तरीके से आपात्र लोगों को आवास आवंटन कर दिया गया इसकी शिकायत जब अधिकारियों से किया गया तो अधिकारियों ने जांच का हवाला दिया, कई दिन बीत गए लेकिन आजतक जांच नहीं हो पाई है।
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