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अध्यादेश को लेकर केन्द्र पर भड़के CM केजरीवाल, बोले- ‘अब पीएम मोदी होंगे दिल्ली के सीएम’

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बुधवार को केंद्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रेस कांफ्रेंस की। इसमें उन्होंने बताया कि इस अध्यादेश के खतरनाक पहलू अब सामने आने लगे हैं।

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मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि केंद्र सरकार के अध्यादेश की खतरनाक बातें सामने आने लगी हैं। इसके कई ऐसे प्रावधान ऐसे हैं, जिनकी वजह से दिल्ली में चुनी हुई सरकार का कोई मतलब नहीं रह जाता। उन्होंने इस अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट के आदेश और दिल्ली सरकार के अधिकारों को कुचलने वाला बताया। कहा कि अध्यादेश के अनुसार, अब मुख्य सचिव तय करेगा कि कैबिनेट का निर्णय सही है या गलत। वहीं यदि किसी विभाग के सचिव को लगता है कि मंत्री का आदेश गलत है तो वो मानने से इंकार कर सकता है। यह दुनिया में पहली बार हो रहा है कि सचिव को मंत्री का बॉस बना दिया गया हो।

मोदी जी हैं और वो ही सभी फैसले लेंगे…

उन्होंने कहा कि इस अध्यादेश को एक लाइन में कहें तो अब दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल नहीं, बल्कि मोदी जी हैं और वो ही सभी फैसले लेंगे। सीएम अरविंद केजरीवाल इस अध्यादेश को लेकर बुधवार को मीडिया से बात कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अध्यादेश में तीन ऐसे प्रावधान हैं, जिससे दिल्ली सरकार ही पूरी तरह से खत्म हो जाती है। उन्होंने उदाहरण दिया कि सर्विसेज मंत्री सौरभ भारद्वाज ने विजिलेंस सचिव को एक वर्क ऑर्डर दिया कि किस तरह से कार्य किया जाएगा, मगर विजिलेंस सचिव ने दिल्ली सरकार के अंदर खुद को एक स्वतंत्र प्राधिकारी घोषित करते हुए कहा कि अध्यादेश के बाद वह दिल्ली की चुनी हुई सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं हैं। वह एलजी के प्रति भी प्राधिकरण के तहत ही जवाबदेह हैं।

सीएम केजरीवाल ने दूसरे उदाहरण में बताया कि दिल्ली में एक जगह झुग्गियां तोड़ी गई। दिल्ली सरकार के वकील ने झुग्गियां तोड़ने के खिलाफ बहुत कमजोर दलीलें दी। उसकी दलीलों को सुन कर ऐसा लगा रहा था कि वो दूसरी पार्टी से मिला हुआ है। इसके बाद संबंधित मंत्री ने सचिव को आदेश दिया कि हमें अगली सुनवाई में कोई अच्छा और वरिष्ठ वकील नियुक्त करना चाहिए। इस पर संबंधित सचिव फाइल में लिखती हैं कि अधिवक्ता की नियुक्ति का अधिकार मेरा है। मंत्री इसके लिए मुझे आदेश नहीं दे सकते हैं।सीएम अरविंद केजरीवाल ने सवाल उठाया कि ऐसे में वह सरकार कैसे चलाएंगे, जब हर फैसले सचिव करेंगे. आज हर एक सचिव सुप्रीम कोर्ट का जज बन गया है।

दिल्ली सरकार के प्रेसनोट के मुताबिक अध्यादेश में मुख्य सचिव को शक्ति दी गई है कि वो यह तय करेगा कि कैबिनेट का कौन सा निर्णय कानूनी और गैर-कानूनी है। जबकि राज्य की कैबिनेट सुप्रीम होती है। जिस तरह से देश की कैबिनेट सुप्रीम होती है। मगर अब अगर मुख्य सचिव को यह लगेगा कि कैबिनेट का निर्णय गैर-कानूनी है तो वो उसे उपराज्यपाल के पास भेजेगा। इसमें उपराज्यपाल को यह शक्ति दी गई है कि वो कैबिनेट के किसी भी निर्णय को पलट सकता है। आज तक भारत और दुनिया के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि मंत्री के उपर सचिव को और कैबिनेट के उपर मुख्य सचिव को बैठा दिया गया हो। इसी प्रकार एक और प्रवाधान है कि दिल्ली सरकार के अधीन जितने भी आयोग, सांविधिक प्राधिकरण और बोर्ड हैं, उन सभी का गठन अब केंद्र सरकार करेगी।

इसका मतलब साफ है कि दिल्ली जल बोर्ड, दिल्ली परिवहन निगम, दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग का गठन अब केंद्र सरकार करेगी। दिल्ली में अलग-अलग विभाग और सेक्टर से जुड़े 50 अधिक आयोग हैं और उनका गठन अब केंद्र सरकार करेगी तो फिर दिल्ली सरकार क्या करेगी? उन्होंने कहा कि यदि यही होना है तो फिर दिल्ली में चुनाव ही क्यों कराया जाता है? यह बहुत ही खतरनाक अध्यादेश है। उन्होंने कहा कि केंद्र यह अध्यादेश बड़ी बेशर्मी के साथ सत्ता हड़पने के लिए लाया है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि डीईआरसी के अध्यक्ष की नियुक्ति के मामले में एलजी मंत्री परिषद की सहायता और सलाह से काम करने के लिए बाध्य है। अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को पलट दिया गया। अब डीईआरसी के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति केंद्र द्वारा किया जाएगा।

मंत्री के आदेश को खारिज कर सकता है सचिव

इसी प्रकार अध्यादेश कहता है कि अब किसी भी विभाग का सचिव तय करेगा कि संबंधित मंत्री की ओर से जारी कोई निर्देश वैध है या नहीं। अध्यादेश से पहले तक मंत्री अपने विभाग के सभी मामलों के लिए खुद जिम्मेदार होता था और उसका लिखित निर्देश का पालन अफसरों के लिए बाध्यकारी था। इस अध्यादेश ने सचिव को अब एक तरह से विभाग का बॉस बना दिया है। उन्होंने कहा कि अभी तक कैबिनेट के सामने अगर कोई मुद्दा रखा जाता है तो कैबिनेट नोट को अंतिम रूप देने की जिम्मेदारी मंत्री की होती थी। लेकिन अध्यादेश के जरिए अब यह जिम्मेदारी सचिव को दे दी गई है। अब मंत्री किसी भी कैबिनेट नोट को अंतिम रूप नहीं देंगे। अगर चुनी हुई सरकार कोई स्कीम या एजेंडा या प्रोग्राम कैबिनेट में लाना चाहे और सचिव उसे मना कर दे तो सरकार अब उसे कैबिनेट में नहीं ला पाएगी।

कैबिनेट नोट पर ओवरराइटिंग कर सकता है मुख्य सचिव

इस अध्यादेश में सबसे चौंकाने वाला प्रावधान यह है कि कैबिनेट के निर्णयों पर फैसला सुनाने की शक्ति मुख्य सचिव को दी गई है। यदि कैबिनेट कोई निर्णय लेती है तो मुख्य सचिव को यह तय करने के लिए कैबिनेट पर ओवरराइटिंग की शक्तियां दी गई हैं। प्रावधान कहता है कि मुख्य सचिव तय करेंगे कि कैबिनेट का फैसला कानूनी है या नहीं और अगर उन्हें लगता है कि कोई फैसला अवैध है तो वो इसे एलजी के पास भेज सकते हैं जो अंतिम फैसला लेंगे। उन्होंने कहा कि अभी तक एलजी के पास कोई स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति नहीं थी। यदि वे मंत्रिपरिषद के किसी निर्णय से अलग मत रखते हैं तो वो मामले को केवल राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। मगर इस अध्यादेश के जरिए एलजी को कैबिनेट के किसी भी फैसले को बदलने या खारिज करने का अधिकार दिया गया है। इस प्रकार इस अध्यादेश के जरिए चुनी हुई सरकार को पूरी तरह अनावश्यक बना दिया गया है। सभी शक्तियां नौकरशाही में स्थानांतरित कर दी गई हैं और नौकरशाहों पर नियंत्रण केंद्र सरकार के पास रहेगा।

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