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Falgun Mela: छत्तीसगढ़ में कल से होगा ऐतिहासिक फागुन मेला, होती है ये 10 अनोखी रस्में

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Falgun Mela: छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में ऐतिहासिक फागुन मेला (Falgun Mela) की शुरुआत होने वाली है। 26 फरवरी से इस मेला की शुरुआत होगी। इस ऐतिहासिक फागुन मेले की सबसे खास बात यह है कि बस्तर संभाग के साथ बाकी जिलों से करीब एक हजार देवी-देवताओं की विग्रह इस मेले में पहुंचती है, जहां पूरे 12 दिनों तक विधि-विधान से इन देवी देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है. छत्तीसगढ़ में राजिम के बाद सबसे बड़े मेले का आयोजन दंतेवाड़ा में होता है, जहां हजारों की संख्या में शहर और आदिवासी अंचलों के ग्रामीण पहुंचते हैं।

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9 मार्च तक होगा मेले का आयोजन

 इस फागुन मेले में पूरी तरह से पारंपरिक विधि विधान से अनोखी रस्मों को निभाया जाता है। 26 फरवरी से शुरू होने वाला यह फागुन मेला 9 मार्च तक चलेगा और 7 मार्च को होली के दिन देवी देवताओं की होली के बाद 8 और 9 मार्च को देवी देवताओं की विदाई होगी। बस्तर राजपरिवार के राजकुमार कमलचंद भंजदेव मां दंतेश्वरी की आराधना करने के बाद इस मेले की शुरुआत करते हैं। इस साल होने वाले फागुन मेला की तैयारी पूरी कर ली गई है।

ताड़ के पत्तों से होता है होलिका दहन

बस्तर के आदिवासियों की सैकड़ों साल पुरानी परंपरा और रीति रिवाजों को इस फागुन मेले में निभाया जाता है। हर साल होने वाले इस फागुन मेले में बस्तर संभाग के एक-एक गांव से देवी-देवताओं के विग्रह को दंतेवाड़ा शक्तिपीठ में लाया जाता है और यहां 12 दिनों तक पूजा पाठ कर अद्भुत रस्में निभाई जाती हैं। वहीं 10 दिनों तक मां दंतेश्वरी और मावली माता की पालकी को पूरे शहर में भृमण कराया जाता है और ग्रामीणों के द्वारा मंडई मेले का आयोजन होता है, जो रात भर चलता है। इस मेले में आदिवासियों की नर्तक दल, रामायण नाट रात भर होता है। खास बात यह है कि पूरे बस्तर संभाग का यह सबसे बड़ा मेला होता है और छत्तीसगढ़ में राजिम के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा मेला होता है। जिला प्रशासन और टेम्पल कमेटी के द्वारा धूमधाम से इस फागुन मेले का आयोजन कराया जाता है।

सैकड़ों सालों से चला आ रहा ये मेला

बताया जा रहा है कि मेला सैकड़ों सालों से चलते आ रहा है, होलिका दहन के ठीक 11 दिन पहले से शुरू होने वाले इस मेले में बस्तर के आदिवासियों की संस्कृति और मां दंतेश्वरी और मावली माता के प्रति ग्रामीणों की सच्ची आस्था दिखाई देती है, जहां पूरे 12 दिनों तक 1 हजार से अधिक देवी देवताओं की पूजा की जाती है, साथ ही मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा अर्चना की जाती है। खास बात यह है कि होलिका दहन के दिन लकड़ियां नहीं बल्कि बस्तर में बहुतायात में पाए जाने वाले ताड़ के पत्तों की होलीका सजाई जाती है और इसके दहन के बाद राख से तिलक कर दूसरे दिन देवी देवताओं की होली खेली जाती है, जिसमें हजारों की संख्या में लोग मौजूद रहते हैं।

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