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प्यार की परिभाषा क्या है? जानें लैला मजनू की अमर प्रेम कहानी से

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Laila Majnu love story: प्यार की परिभाषा क्या है, इसको लेकर ना जाने कितने विद्वानों ने रिसर्च किया तथा उन्होंने अपनी राय दुनिया के सामने भी रखी है। प्यार की कोई एक परिभाषा नहीं है, सिर्फ किसी को पा लेना प्यार नही कहलाता, प्यार को किसी के दिल में जगह बनाने को कहते हैं। प्रेम एक ऐसा फल है, जो हर मौसम में मिलता है तथा जिसे सभी पा सकते हैं। प्यार कुछ ऐसा नहीं है जिसे आप ढूंढ ले, असल में प्यार आपको ढ़ूढ लेता है। किसी के द्वारा मिला प्यार आपको शक्ति देता है तथा जब किसी से प्यार करते है तो आपको हिम्मत मिलती है। प्यार दिल का एहसास है जो मनुष्य को खुशी की ओर ले जाता है।
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आपको बता दें कि प्यार दो मनुष्यों की भावनाओं का मिलन है। दुनिया में ज्यादातर लोगों को सबसे पहले मोहब्बत अपने माता-पिता से होती है। जब मनुष्य का दिमाग पूरी तरह मैच्योर हो जाता है तो प्यार होने के चांसेस बहुत कम हो जाते हैं। एक मैच्योर मनुष्य अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए रिश्ता बनाता है जिसमें प्यार होने के चांसेस ना के बराबर ही होते हैं। देखा होगा प्यार ज्यादातर लोगों को कम उम्र में ही होता है। साइंस तथा साइकोलॉजी की बात माने तो यह बात हंड्रेड परसेंट सही भी है।

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लैला-मजनू की कहानी 7वीं सदी की है जब अरब के रेगिस्तानों में अमीरों का बसेरा हुआ करता था। अरब के शाह अमारी के बेटे इब्न आमरी यानी मजनू को देखते हीं ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि वह प्रेमी दीवानों की तरह दर-दर भटकता फिरेगा। ज्योतिषियों की भविष्यवाणी को झुठलाने के लिए शाह अमारी ने अपने बेटे को प्रेमरोग से महरूम रखने के लिए हर संभव प्रयास किये, लेकिन एक दिन कुदरत ने अपना खेल दिखा दिया।

नाज्द के शाह की बेटी लैला को मजनू ने दमिश्क के मदरसे में देखा और पहली नजर में हीं उसका आशिक हो गया। मौलवी ने उसे लाख समझाया कि वह उसे भूलकर पढ़ाई में अपना ध्यान लगाए, लेकिन तब तक मजनू दिवाना हो चुका था। मजनू की मोहब्बत का असर लैला पर भी हुआ और दोनों हीं सच्‍चे प्रेमियों की तरह प्रेम की अग्नि में कूद पड़े।

बताते हैं कि लैला एक सियाहफाम यानी काली लड़की थी और मजनू गोरा नौजवान। लोगों ने जब मजनू से पूछा कि तुमने काली लड़की में क्या देखकर उससे मोहब्बत की, इस पर मजनू ने कहा कि कुरान शरीफ के हर हर्फ काले रंग के अक्षर में ही लिखे गए हैं। जहां आशिक का दिल आता है वहां काले और गोरे का भेद नहीं आता। लैला को भी मजनू से प्यार हो गया था, लेकिन लैला के घर वालों को मजनू पसंद नहीं था। इसी वजह से लैला के घरवालों ने उसकी शादी बख्त नाम के इंसान से करा दी। लेकिन प्रेम दिवानी लैला ने अपने शौहर से बता दिया कि वह मजनू के अलावा किसी और की नहीं हो सकती।

मजनू की याद में वह बीमार होने लगी और मौत उसके करीब आ गई। मजनू को जब लैला के इस हालत का पता चला तो वह उससे रहा नहीं गया और वह लैला से मिलने अरब के तपते रेगिस्तानों में गिरता-पड़ता किसी तरह लैला के पास पहुंचा, लेकिन समाज को यह मंजूर नहीं था। जैसे हीं लैला के पास वह पहुंचा लोगों ने उसे पत्थर मारना शुरू कर दिया और उसे भगाने का प्रयास करने लगे।

कहा जाता है कि उन दोनों के प्रेम में इतनी सच्चाई थी कि चोट एक को लगता तो तकलीफ दूसरे को होती। पत्‍थर से जख्‍मी मजनू हो रहा था और लैला दर्द से कराह रही थी। अंत में मजनू से न मिल पाने के गम में लैला की मौत हो गई। कहा जाता है कि लैला की मौत के तुरंत बात ही मजनू ने भी दम तोड़ दिया।

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