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गणेश चतुर्थी: जानिए कहां स्थापित है भगवान गणेश का कटा हुआ सिर

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नई दिल्ली। कल यानि शुक्रवार से महाराष्ट्र का प्रसिद्ध पर्व गणेश चतुर्थी शुरू हो रहा है। जिसे महाराष्ट्र के साथ पूरे देश में बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। इस दिन गणेश जी की मूर्ति स्थापित की जाती है और उसके लगभग 10 दिन बाद उसे विसर्जित कर दिया जाता है।

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क्या आप जानते हैं कि आखिर इस तिथि को ही गणेश पर्व क्यों मनाया जाता है?

दरअसल, भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इसलिए हर साल गणेश चतुर्थी के दिन बप्पा भक्तों के घर आते हैं और भक्त बड़े धूमधाम से उनका जन्मदिन मनाते हैं। इसके साथ ही भक्त भगवान की पूजा-अर्चना करते है।

इस बार गणेश चतुर्थी 10 सितंबर को पड़ रही है। गणेश मूर्ति की स्थापना के लिए जगह-जगह पर पंडाल सजाए गए हैं। वहीं, सभी गणेश मंदिरों को सजाया गया है। भगवान गणेश के जन्म, उनके वाहन, भोग, माता पार्वती और भगवान शिव जी के साथ उनकी कई कथाएं प्रचलित हैं, जिसे बच्चों के साथ-साथ बड़े भी काफी उत्सुकतापूर्वक सुनते हैं।

त्तराखंड की एक गुफा में स्थापित है भगवान गणेश का सिर

जैसा कि आप जानते हैं कि भगवान गणेश का धड़ बालक का और सिर हाथी के बच्चे का है। ये भी पता होगा कि उनका सिर भगवान शिव ने ही क्रोध में काट दिया था। लेकिन बाद में उनके धड़ पर हाथी का सिर लगाकर जोड़ दिया था लेकिन वो कटा हुआ सिर कहां गया, क्या आपको इसकी जानकारी है? शिवजी ने वो कटा हुआ सिर एक गुफा में रख दिया था। ऐसी मान्यता है कि वो सिर आज भी उसी गुफा में रखा हुआ है और इस समय इस गुफा को पाताल भुवनेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।

सभी युगों में की गई इस गुफा की खोज

यह गुफा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां उन्हें आदि गणेश के नाम से जाना जाता है। यह गुफा रहस्य और सुंदरता का बेजोड़ मेल है। सुंदर प्राकृतिक दृश्यों से घिरे उत्तराखंड में यह स्थान पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। ऐसा कहा जाता है कि इस गुफा की खोज त्रेता युग में राजा ऋतुपर्णा ने की थी। राजा ऋतुपर्णा पहले ऐसे इंसान थे, जिन्होंने इस दिव्य गुफा की खोज की थी। लेकिन बाद में लोगों ने इस गुफा को भुला दिया। उसके बाद द्वापर युग में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान इस गुफा की खोज की और यहां भगवान शिव की पूजा करने लगे। कलयुग में पाताल भुवनेश्वर गुफा की खोज आदि शंकराचार्य ने आठवीं सदी में की थी।

णेश के सिर की रक्षा भगवान शिव स्वयं करते हैं

ऐसा माना जाता है कि इस गुफा में मौजूद भगवान गणेश के सिर की रक्षा भगवान शिव स्वयं करते हैं। इस गुफा की बनावट को देख कर लगता है कि गुफा की रक्षा के लिए शेषनाग ने इसे चारों तरफ से घेर रखा है। यहां गणेश जी की कटी शिला रूपी मूर्ति भी स्थापित है, इस मूर्ति के ठीक ऊपर 108 पंखुड़ियों वाला शिवाष्टक दल ब्रह्म कमल रूपी एक चट्टान स्थापित है। इस ब्रह्म कमल रूपी शिला से भगवान गणेश के शिला रूपी मस्तक पर दिव्य बूंद टपकती रहती है। कहा जाता है कि स्वयं भगवान शिव ने इस ब्रह्मकमल को यहां स्थापित किया था।

शिवलिंग भी है स्थापित जो लगातार बढ़ रहा है

यह गुफा 90 फीट की गहराई में है और इस गुफा के दर्शन के लिए काफी सकरे रास्ते से होकर मंदिर में प्रवेश किया जाता है। गुफा के अंदर जाने के लिए जंजीरों का सहारा लेना पड़ता है। इसके अलावा इस गुफा की सबसे खास बात यह है कि यहां एक शिवलिंग स्थापित है, जो लगातार बढ़ रहा है। वर्तमान में शिवलिंग की ऊंचाई 1.50 feet है। गुफा के चट्टान की बनावट देखने में 100 पैरों वाले ऐरावत हाथी की तरह लगती है। साथ ही आगे बढ़ने पर इन चट्टानों की कलाकृति नागों के राजा अधिशेष को दर्शाती है। यहां चमकीले पत्थर भगवान शिव जी के जटाओं और उनकी आकृतियों को दर्शाते हैं।

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