मणिपुर हिंसा की जांच में रोड़ा बन रही है अधिकारियों की कमी

नई दिल्ली: मणिपुर में मई के महीने से शुरु हुई हिंसा की जांच के लिए दिल्ली समेत 6 राज्यों से 14 आइपीएस और 6 इंस्पेक्टरों को भेजा गया था। वहां बनाई गईं 42 एसआइटी 3 हजार मुकदमों की जांच कर रही हैं, किंतु बेहतर ढंग से जांच करने में अफसरों की कमी आड़ें आ रही है।
जांच से जुड़े अफसरों का कहना है कि इस संख्या बल के मुताबिक एक इंस्पेक्टर पर 7 एसआइटी यानी लगभग 500 केसों की निगरानी करने की जिम्मेदारी है, जो व्यावहारिक बिल्कुल भी नहीं है।
अफसरों की कमी से जांच में हो रही परेशानी
मणिपुर हिंसा की जांच सीबीआइ को सौंपे जाने के बाद केंद्र सरकार ने दिल्ली, महाराष्ट्र, ओडिशा, झारखंड, राजस्थान और मध्य प्रदेश से चौदह आइपीएस और 6 इंस्पेक्टरों को जांच में सहायता के लिए भेजा है। ये अफसर एसआइटी जांच की निगरानी कर रहे है। दिल्ली से सबसे ज्यादा 3 आइपीएस हरेंद्र कुमार सिंह, श्वेता चौहान और ईशा पांडे को जांच के लिए चयनित किया गया है।
अफसरों का कहना है कि 1 आइपीएस 3 एसआइटी की निगरानी तो कर सकते हैं, किंतु 1 इंस्पेक्टर को 7 एसआइटी की निगरानी करने में परेशानी आ सकती है, क्योंकि एक इंस्पेक्टर के जिम्मे 500 मुकदमे होंगे। इससे कई तरह की परेशानियां पैदा हो सकती हैं।
मणिपुर में आ रही है भाषा को लेकर समस्या
राज्य में हुई हिंसा में चर्च और अन्य धार्मिक स्थलों, घरों, दुकानों और ऑफिसों में आग लगा दी गई। बड़ी संख्या में लोगों की हत्या हुई, लोगों को जिंदा जलाया गया, लूटपाट, रेप और छेड़खानी की घटनाएं हुईं। लोगों को गंभीर चोट पहुंचाई गई। इससे संबंधित कई मुकदमे दर्ज किए गए हैं। जांच के लिए 4 श्रेणियां बनाई गई है। एक पुलिस अफसर का कहना है कि वहां भाषा से जुड़ी परेशानी आ रही है। स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं है। दोनों समुदाय एक दूसरे को दुश्मन की नजर से देख रहे हैं। जनता में अब भी भय का माहौल है। बड़ी संख्या में लोग राहत शिविर में रहने को मजबुर हैं। इलाका भी एक जैसा नहीं है, कहीं मैदानी तो कहीं पहाड़ी एरिया है। इसके लिए इंस्पेक्टरों की संख्या बढ़ाई ही जानी चाहिए।
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