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टेंट में रहने से लेकर क्रिकेट स्टार बनने तक…संघर्षों से लिखी सफलता की कहानी यशस्वी जायसवाल

यशस्वी आज क्रिकेट गलियारों का एक उभरता हुआ सितारा हैं; लेकिन यह सफलता उन्हें काफ़ी मेहनत और संघर्ष के बाद हासिल हुई है। उत्तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले यशस्वी का बचपन बेहद ही गरीबी में बीता। बस क्रिकेट का जुनून उनमें इस कदर था कि केवल 11 साल की उम्र में क्रिकेटर बनने का सपना लेकर वह मुंबई आ गए।

यहाँ उन्होंने संघर्ष भरा जीवन जिया। मैदान में उनका सफ़र बॉल ढूंढने के काम से शुरू हुआ था। आज़ाद मैदान में होने वाले मैचों में अकसर गेंद खो जाया करती थी, तब बॉल ढूंढकर लाने पर यशस्वी को कुछ रुपये मिल जाते थे। फिर एक दिन ऐसा आया जब उनकी सारी मेहनत सफल हो गई।

आज़ाद मैदान में ही कोच ज्वाला सिंह ने उनको खेलते हुए देखा; और उनका हुनर पहचाना ही नहीं, निखारा भी! तभी से वह यशस्वी को खुद ट्रेन करने लगे थे। आज उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि उनका शिष्य भारतीय क्रिकेट के बेहतरीन खिलाड़ियों में शुमार है! हम यशस्वी के बारे में इतना ही कहेंगे कि-

तूफ़ान में भी जलता रहे वह दीया बनो,

बरसात में सैलाब न लाए वह दरिया बनो,

ग़म मे तुम टूट ना जाना, ख़ुशी मे बह ना जाना,

हर हालात मे हंसते रहना, हंस के मुश्किलों को भगाना.. सफलता पाना!!

यशस्वी जायसवाल की कहानी उनकी जुबानी- “मैं जब सिर्फ़ 11 साल का था तब अपना घर छोड़ दिया और मुंबई आ गया था। यहाँ मैं कुछ दिनों के लिए कालबादेवी नाम की डेरी में रहा, लेकिन फिर मुझे वो जगह छोड़नी पड़ी। उसके बाद मेरे जानने वाले एक अंकल ने मुस्लिम यूनाइटेड क्लब से रिक्वेस्ट करके आज़ाद मैदान के ग्राउंड्सकीपर्स के साथ टेंट हाउस में मेरे रहने का  इंतज़ाम किया।

इस टेंट हाउस में मैं 3 साल रहा और यह समय काफ़ी मुश्किल रहा; कई बार रात को खाली पेट भी सोना पड़ता था। मैं संघर्ष के उन दिनों को कभी नहीं भूलूंगा। उन दिनों ने ही मुझे मेंटली स्ट्रांग बनाया है। मैंने खेल में कड़ी मेहनत की और खुद को तैयार किया। मुझे खुद पर पूरा भरोसा है। मुझे पता है कि केवल एक ही इंसान मेरी मदद कर सकता है, और वह मैं खुद हूँ।”

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