Dhanteras: दिपावली से पहले क्यों मनाते हैं धनतेरस का पर्व, जानिए क्या है इसकी मान्यता

दिपावली से दो दिनों पहले धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है की समुन्द्र मंथन के दौरान भगवान धनवंतरि हाथों में कलश लेकर उत्पन्न हुए थे। उसके दो दिनों के बाद मां लक्ष्मी प्रकट हुईं थी, जिस वजह से धनतेरस के दो दिन के बाद दिपावली का पर्व मनाया जाता है। आइए जानते हैं धनतेरस मनाने की मान्यता के वारे में..
धनतेरस मनाने की परंपरा
शास्त्रों के अनुसार, भगवान धनवंतरी धनतेरस के दिन सागर मंथन से हाथों में स्वर्ण कलश लेकर निकले थे। धनवंतरी ने अमृत कलश के जल से देवताओं को अमर कर दिया। धनवंतरी के जन्म के दो दिनों बाद देवी लक्ष्मी का अवतार हुआ। इसलिए पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है फिर उसके दो दिनों के बाद दीपावली का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है की भगवान धनवंतरी देवताओं के चिकित्सक हैं। इनकी पूजा और भक्ति से स्वास्थ्य सुख मिलता है। धनवंतरी भगवान विष्णु के अंशावतार हैं। ये भी कहा जाता है की भगवान विष्णु ने धनवंतरी का अवतार लिया था ताकि चिकित्सा विज्ञान का विस्तार और प्रसार हो सके।
अन्य कथा
धनतेरस से जुड़ी एक दूसरी कथा के अनुसार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान विष्णु ने असुरों के गुरु शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ दी थी क्योंकि वे देवताओं के काम में बाधा डाल रहे थे। कहते हैं की राजा बलि से भयभीत देवताओं को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञस्थल पर पहुंचे। शुक्राचार्य ने भगवान विष्णु को वामन रूप में पहचान लिया और राजा बलि से कहा की वामन कुछ भी मांगे मत देना क्योंकि वामन स्वयं विष्णु हैं। देवताओं की सहायता करने के लिए वे तुमसे सब कुछ लेने आए हैं।
बलि ने शुक्राचार्य का उपदेश नहीं सुन लिया। वामन भगवान से तीन पग जमीन देने का निश्चय करने के लिए कमण्डल से जल लेने लगे। राजा बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य ने लघु रूप धारण करके कमण्डल में प्रवेश किया। इससे कमण्डल से जल निकलना बंद हो गया। वामन भगवान ने शुक्र की चाल को समझा। जब भगवान वामन ने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमण्डल में रखा, तो शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई। शुक्राचार्य घबरा गए और कमण्डल से बाहर निकल गए। बलि ने संकल्प लेकर तीन पग जमीन दे दी।
तब भगवान वामन ने अपने एक पैर से पूरी धरती को नाप लिया, और दूसरे पैर से आकाश को। तीसरा पग नहीं होने पर बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रखा। इस तरह उसने अपना सब कुछ दान में दे दिया। देवताओं को बलि के भय से छुटकारा मिल गया, और बलि से जो धन मिला था, उससे बहुत अधिक धन देवताओं को मिल गया। धनतेरस का त्योहार भी इस उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
धनतेरस का महत्व
धनतेरस के शुभ मुहूर्त में बर्तन, सोने और चांदी के अलावा वाहन, जमीन, लग्जरी सामान और घर में काम आने वाले अन्य सामान खरीदना शुभ माना जाता है। धनतेरस के दिन चल-अचल संपत्ति की कीमत 13 गुना बढ़ जाती है। धनतेरस पर सोना, चांदी और बर्तन खरीदना कुबेर का काम है। यह भी कहा जाता है कि झाड़ू खरीदना अच्छा है। यह दिन भी साबुत धनिया घर में लाने से कभी धन की कमी नहीं होती है। धनतेरस पर माता लक्ष्मी, कुबेर, यमराज और भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए। धनतेरस के दिन 13 दीपक घर और बाहर जलाने से बीमारी दूर होती है।