
उफनती नदी अपने साथ सब कुछ बहाकर ले जाती है। चाहें वो पुल हो या मकान या कुछ और। इन लहरों के बीच लोग जाने से भी कतराते हैं लेकिन बिहार की जिस ख़बर से हम आपको रूबरू कराने जा रहे हैं, वहां माजरा कुछ और है। यहां आज भी बच्चे शिक्षा के ज्ञान से सरावोर होने के लिए दरिया पार करते हैं। ये उनका शौक नहीं मजबूरी है।
‘नेता आए और वोट लेकर चले गए’
स्थानीय लोगों की मानें तो नेता आते हैं और वोट लेकर चले जाते हैं। कोई उनकी परेशानी को मुड़कर नहीं देखता। सालों से यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। यहां बच्चे बांस के बने पुल के सहारे नदी पार कर स्कूल आते-जाते हैं। लोगों का कहना है कि शासन-प्रशासन सबको इस परेशानी का पता है लेकिन हल करने कोई नहीं आता।
बांस की बेरीकेडिंग के सहारे पार करते पुल
औरंगाबाद में आपके दिल में खौफ करने वाला यह दृश्य आम है। यहां सैकड़ों बच्चे अपनी जान जोखिम में डालकर स्कूल आने-जाने को मजबूर हैं। मामला देव प्रखंड के हसौली पंचायत के कुंडा ग्राम का है। यहां चचरी का पुल है। जिसके सहारे नदी पार कर आज भी कई गांवों के बच्चे स्कूल जाने पर मजबूर हैं। पुल के दोनों और बांस की बेरीकेडिंग हैं। इसी के सहारे बच्चे नदी पार करते हैं। लोगों का कहना है कि सबसे ज्यादा परेशानी बरसात के दिनों में होती है, क्योंकि इस समय नदी का बहाव काफी तेज हो जाता है। डर लगता है कि कही गिर न जाएं।
मुख्यमंत्री तक पहुंच चुका है आवेदन, नतीजा सिफर
सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार राम का कहना है कि विधायक आनंद शंकर को तो कम से कम इस समस्या पर ध्यान देना चाहिए था। उनके द्वारा कुछ भी नहीं किया गया। कुंडा गांव निवासी पवन महतो ने बताया कि पुलिया निर्माण के लिए उनके द्वारा वर्ष 2009 में तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री भगवान सिंह कुशवाहा को और वर्ष 2012 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आवेदन दिया गया था। अभी तक कहीं कोई काम नहीं हुआ।
रिपोर्ट: दीनानाथ मौआर, संवाददाता, औरंगाबाद, बिहार
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