रंगा-बिल्ला को फांसी देने के बाद हुआ कुछ ऐसा कि जल्लाद के भी उड़े होश

Black Warrant

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Black Warrant: नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही वेब सीरीज ब्लैक वारंट में तिहाड़ जेल से जुड़ी कई अनसुनी घटनाएं साझा की गई हैं। इन्हीं में से एक है रंगा और बिल्ला की फांसी की चौंकाने वाली कहानी। गीता और संजय चोपड़ा की हत्या के दोषी कुलजीत सिंह उर्फ रंगा और जसबीर सिंह उर्फ बिल्ला को 31 जनवरी 1982 को दिल्ली के तिहाड़ जेल में फांसी दी गई थी। 

अगस्त 1978 में रंगा-बिल्ला ने नौसेना अधिकारी के बच्चों गीता और संजय का अपहरण किया था। गीता के साथ दुष्कर्म के बाद उन्होंने दोनों की बेरहमी से हत्या कर शव जंगल में फेंक दिए। जब पुलिस ने दोनों की सड़ी हुई लाशें बरामद कीं, तो यह मामला पूरे देश में सनसनी बन गया। रंगा और बिल्ला को फरार होने के बाद आगरा रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार किया गया था। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने उनकी फांसी की सजा बरकरार रखी। 

अधिकारी और जल्लाद रह गए हैरान

31 जनवरी 1982 को फांसी के लिए तिहाड़ जेल में मेरठ और फरीदकोट से जल्लाद बुलाए गए। फांसी देने के दो घंटे बाद जब डॉक्टरों ने शवों की जांच की, तो बिल्ला की मृत्यु हो चुकी थी, लेकिन रंगा की नाड़ी चल रही थी। यह देख जेल अधिकारी और जल्लाद हैरान रह गए। डॉक्टर की सूचना पर हड़कंप मच गया और फंदे को दोबारा कसकर खींचा गया, जिसके बाद रंगा की मौत हुई। 

इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की प्रक्रिया में बदलाव का आदेश दिया। अब फांसी से पहले दोषी के वजन के बराबर डमी का ट्रायल किया जाता है ताकि भविष्य में ऐसी घटना न हो। 

यह वाक्या तिहाड़ जेल के इतिहास का एक अनोखा अध्याय बन गया, जिसे पूर्व कानून अधिकारी सुनील गुप्ता और पत्रकार सुनेत्रा चौधरी ने अपनी किताब ब्लैक वारंट में दर्ज किया है। निर्देशक विक्रमादित्य मोटवानी ने इसे वेब सीरीज में भी दिखाने का साहसिक प्रयास किया।

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