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Bihar: उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के वंशज निभा रहे हैं पुरानी परंपरा, इस मंदिर में कर रहे हैं शहनाई वादन

बिहार के एक मंदिर में, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान प्राचीन पारंपरिक तरीके से माता रानी के लिए शहनाई वादन किया थे। आज उनके वंशज 100 साल से भी अधिक समय से इस परंपरा को निभा रहे हैं। यह मंदिर बहुत पुराना है और पूर्णिया के केनगर प्रखंड में चंपानगर में है। उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने चंपानगर राज्य से बहुत कुछ दिया था, और यह परंपरा उनके समय से आज तक जारी है। बनैली राज्य के राजा कलानंद सिंह ने 1908 में इस मंदिर की स्थापना की, जो आज भी जारी है।

बिस्मिल्लाह खान के वंशज ने क्या कहा

बिस्मिल्लाह खान के परिवार के वंशज रोशन अली खान, गुड्डू खान, रहमत अली और अन्य वंशजों ने बताया कि वह पूर्णिया के केनगर प्रखंड के चंपानगर स्थित देवीघरा का मंदिर काफी पौराणिक है। 100 वर्ष से अधिक पुराने इस मंदिर में बिस्मिल्लाह खान भी शहनाई बजाते थे। लेकिन, धीरे-धीरे पीढ़ी दर पीढ़ी लोग आगे निकलते गए। अब जाकर हमारी बारी आई है। साथ ही, उनके पोते रोशन अली, खान रहमत, अली खान गुड्डू खान ने बताया कि वह उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के वंशज हैं। उन्होंने बताया कि उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को बनारसी संगीत बहुत पसंद था, जिसे लोग गाकर शहनाई के साथ प्रस्तुत करते थे।

परंपरा का पालन

वहीं, पोता रोशन अली खान और अन्य खान ने कहा कि उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की बात की जाए तो उनके सामने ये लोग नहीं हैं, लेकिन वह अपने दादा के बताए हुए रास्ता पर चलने की कोशिश कर रहा है। शहनाई वादन में अच्छा मुकाम पाना चाहते हैं। वह बताते हैं कि पूर्णिया के चंपानगर में देवीघरा मंदिर में यह परंपरा लगभग तीन पीढियों से चली आ रही है। उन्हें पहले पत्र लिखकर भेजा जाता था जब फोन नहीं आता था। दादा उस्ताद बिस्मिल्लाह खान और उनके पिता की मृत्यु के बाद उनके बेटे खुद इस परंपरा को पालन कर रहे हैं। वह कहती है कि वह अपनी अंतिम सांस तक इस मंदिर की परंपरा से जुड़ा रहेगा।

100 सालों से बजा रहे हैं शहनाई वादन

मंदिर कमेटी के सदस्य अमरनाथ गोसाई, झा और ध्रुव कुमार ने कहा कि मंदिर सौ साल से अधिक पुराना है। इसे कृत्यानंद नगर राजा ने बनाया था। लेकिन इसका निर्माण उनसे पहले के राजा ने किया था। इस मंदिर को तब से लेकर आज तक राजघराने परिवार द्वारा पूजा और देखभाल की जाती है। उनका कहना था कि लगभग तीन पीढ़ियों से उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के वंशज इस मंदिर में आते रहे हैं और नवरात्र में नौ दिनों तक निरंतर शहनाई वादन से परिसर को भक्तिमय बनाते हैं।

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