इन दिनों देश में मैरिटल रेप चर्चाओं में है। रेप को जहां बड़ा अपराध माना जाता है, वहीं मैरिटल रेप को अभी अपराध की श्रेणी में रखने या न रखने को लेकर बहस हो रही है। मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में रखने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई है।
हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने मैरिटल रेप को अपराध धोशित करने के मामले में खंडित निर्णय सुनाया। खंडित यानी दो जजों की दो अलग अलग राय। अदालत के एक न्यायाधीश ने इस प्रावधान को समाप्त करने का समर्थन किया, जबकि दूसरे न्यायाधीश ने कहा कि यह असंवैधानिक नहीं है। जबकि न्यायामूर्ति राजीव शकधर ने वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को समाप्त करने का समर्थन किया। ऐसे में सवाल उठता है कि ‘रेप’ व ‘मैरिटल रेप’ में क्या फर्क है इसे लेकर क्या कहता देश का कानून।
क्या है रेप
आईपीसी की धारा 375 के मुताबिक, कोई व्यक्ति अगर किसी महिला के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध या उसकी मर्जी के बिना संबंध बनाता है, तो वह रेप कहा जाएगा।
महिला की सहमति से संबंध बनाया गया हो, लेकिन यह सहमति उसकी हत्या, उसे नुकसान पहुंचाने या फिर उसके किसी करीबी के साथ ऐसा करने का डर दिखाकर हासिल की गई हो, तो यह भी रेप होगा।
महिला की मर्जी से, लेकिन ये सहमति देते वक्त महिला की मानसिक स्थिति ठीक नहीं हो या फिर उस पर किसी नशीले पदार्थ का प्रभाव हो और लड़की कंसेट देने के नतीजों को समझने की स्थिति में न हो।
महिला की उम्र अगर 16 साल से कम हो तो उसकी मर्जी से या उसकी सहमति के बिना किया गया सेक्स।
क्या है मैरिटल रेप
आईपीसी या भारतीय दंड विधान रेप की परिभाषा तो तय करता है लेकिन उसमें वैवाहिक बलात्कार का कोई जिक्र नहीं है। बिना पत्नी का इजाजत के पति द्वारा जबरन सेक्स संबंध बनाने को मैरिटल रेप कहा जाता है। बिना सहमति के संबंध बनाने की वजह से ही इसे इस रेप की श्रेँणी में रखा जाता है।
भारत में पिछले कुछ सालों के दौरान मैरिटल रेप पर कानून बनाने की मांग तेज हुई है। दिल्ली हाईकोर्ट 2015 से ही इस मामले पर कई याचिकाओं की सुनवाई कर रहा है। हालांकि केंद्र सरकार का कहना है कि इस मुद्दे पर कोई कानून बनाने से पहले एक व्यापक विचार- विमर्श की जरूरत है, क्योंकि ये समाज पर गहरा प्रभाव डालेगा।
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