रिक्शाचालक की बेटी आज देश के लिए जीत रहीं ढेरों मेडल

पश्चिम बंगाल की एथलीट स्वप्ना बर्मन की कहानी जानकर आपको यह बात सौ आना सच लगेगी। भारत के एक छोटे से गांव से निकलकर स्वप्ना आज अंतरराष्ट्रीय मंच तक केवल पहुंची ही नहीं हैं, बल्कि हर जगह देश का मान बढ़ा रही हैं। इसी कड़ी में हाल में उन्होंने एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भी सिल्वर मेडल पाया है।
स्वप्ना ने इससे पहले भारत के लिए 2018 के एशियन गेम्स में गोल्ड और 2019 एशियन चैंपियनशिप में सिल्वर जीता था। वह हेप्टाथलान गोल्ड मेडल जीतने वाली देश की पहली महिला खिलाड़ी भी हैं। आज कामयाबी की ऊंचाई पर खड़ी यह लड़की कभी गरीबी और मुसीबतों से घिरी हुई थी।यहां तक पहुंचने की स्वप्ना की राह बिलकुल आसान नहीं रही है। पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के एक छोटे से गांव की रहने वाली स्वप्ना बर्मन की कहानी संघर्षों से भरी है।
उनके पिता रिक्शा से बच्चों को स्कूल से लाने और ले जाने का काम करते थे। उनकी मां चाय बागान में काम करके पैसे जुटाती थीं। पिता उन्हें इसलिए एथलीट बनाना चाहते थे, ताकि बेटी एक दिन सरकारी नौकरी हासिल कर सके। उन्होंने जलपाईगुड़ी में अपने घर के पास ही स्कूल के मैदान में दौड़ना शुरू किया था। आम खिलाड़ियों की तरह स्वप्ना के पास प्रॉपर डाइट की सुविधा नहीं थी, इसलिए वह आसानी से उपलब्ध चावल और आलू खातीं और जमकर प्रैक्टिस करतीं। स्वप्ना के दोनों पैरों में 6-6 उंगलियाँ थीं, जिस कारण उन्हें उनके साइज के जूते भी नहीं मिलते थे। साधारण जूते पहनकर प्रैक्टिस करने से उनके पैर घायल हो जाते थे।
लेकिन 2011 में उनके ऊपर मुसीबतों का मानों पहाड़ ही आकर गिर गया हो। अचानक पिता का काम छूट गया; और उनके दोनों भाइयों की पढ़ाई भी। अब स्वप्ना के भाई काम करते थे और बहन को खेलने के लिए बढ़ावा भी देते। परिवार के इसी समर्थन से उन्होंने मेहनत करना नहीं छोड़ा और आखिरकार 2012 में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) में उनका सिलेक्शन हो गया।
लॉन्ग जंप के खेल में स्वप्ना ने कई रिकॉर्ड बनाए। उन्हें बाद में रेलवे में नौकरी मिल गई और उनके पिता का सपना पूरा हुआ। 2014 में युवा राष्ट्रीय टीम में उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया, जिसके बाद उन्हें अंतरराष्ट्रीय इवेंट के लिए ट्रेनिंग मिली। इसी बीच, जीवन ने एक बार फिर पलटी मारी और उनके पिता का एक्सीडेंट हो गया, वह चलने-फिरने में असमर्थ हो हुए।
लेकिन स्वप्ना ने इन मुसीबतों का सामना करते हुए 2018 एशियन गेम्स में भी हिस्सा लिया और देश के लिए गोल्ड मेडल भी जीता। 2019 एशियन गेम्स में सिल्वर और फिर वह हेप्टाथलान गोल्ड मेडल जीतने वाली देश की पहली खिलाड़ी बनीं। उन्होंने न केवल अपने माता-पिता का नाम रौशन किया, बल्कि देश का खूब मान भी बढ़ाया।