
Supreme Court Hearing : बिहार में मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर दिन ब दिन विवाद बढ़ता जा रहा है. इस मामले को लेकर अब सुप्रीम कोर्ट अपनी दखल देने जा रहा है. जिसपर जस्टिस सुधांशू धुलिया और जस्टिस जोयमाल्या बागची की पीठ 10 जुलाई को इस मुद्दे पर सुनवाई करेगी. यह याचिकाएं एडीआर, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, आरजेडी नेता मनोज झा, योगेंद्र यादव समेत अन्य कई नेताओं द्वारा दाखिल की गई हैं. वहीं वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने इस केस में जल्द सुनवाई की मांग की है. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग का यह फैसला संविधान के खिलाफ है.
क्या है याचिकाकर्ताओं की आपत्ति?
दरअसल इस मामले में याचिकाकर्ताओं का कहना है कि चुनाव आयोग का 24 जून का आदेश संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 19, अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता), अनुच्छेद 325 और 326 का उल्लंघन करता है. इतना ही नहीं करीब 3 करोड़ से अधिक वोटर इस फैसले से प्रभावित हो सकते हैं, जिनमें खासकर वे लोग जो रोजगार के लिए बिहार से बाहर चले गए हैं. ऐसे लोग जरूरी दस्तावेज न होने के कारण अपने मताधिकार से दूर हो सकते हैं.
दस्तावेजों की मांग से परेशानी
बता दें कि 3.16 करोड़ वोटर्स को अपनी जानकारी की पुष्टि दोबारा करनी होगी, जबकि 4.74 करोड़ वोटर्स से पहचान और निवास प्रमाण की मांग की जाएगी. इसके लिए 11 दस्तावेज तय किए गए हैं जिनमें आधार कार्ड, राशन कार्ड, जाति प्रमाण पत्र, जन्म प्रमाण पत्र, वोटर आईडी, ड्राइविंग लाइसेंस, मनरेगा जॉब कार्ड जैसे दस्तावेज शामिल हैं. दूसरी ओर बीएलओ (Booth level officer) को 8 करोड़ फॉर्म दिए गए हैं. जिसके चलते वे घर-घर जाकर यह जानकारी एकत्र कर सकें.
क्या है विपक्ष का आरोप
इस मामले में विपक्ष का आरोप है कि इस प्रक्रिया गरीबों, अल्पसंख्यकों और वंचित वर्गों को चुपचाप मतदाता सूची से बाहर करने की साजिश की जा रही है. मालूम हो कि TMC सांसद महुआ मोइत्रा की याचिका में इस आदेश को रद्द करने की मांग की गई है, दूसरी और आरजेडी नेता मनोज झा ने इसे संविधान विरोधी और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 व मतदाता पंजीकरण नियम 1960 का उल्लंघन करार दिया है.
हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई इस संवेदनशील मुद्दे का भविष्य तय करेगी, जिसमें लाखों मतदाताओं के अधिकार जुडे़ हैं. वहीं अब यह मुद्दा न सिर्फ कानूनी रह गया है बल्कि लोकतंत्र की नींव से भी जुड़ हुआ है.
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