UP ELECTION 2022: अखिलेश यादव के पांच कदम, जिससे विधानसभा चुनाव में ‘फ्रंटफुट पर खेलेगी सपा’

नोएडा: आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियां अपने कील कांटे दुरूस्त करने में लगी हुई है. सपा मुखिया अखिलेश यादव भी सत्ता वापसी के लिए लगातार प्रयास कर रहे है. अखिलेश यादव चुनाव की तैयारी में बहुत सधी हुई चाल चल रहे है. यादव ने अपना अभियान तेजी से शुरू कर दिया है. पश्चिमी यूपी में जाट- मुस्लिम समीकरण को साधने के लिए जयंत चौधरी के साथ हाथ मिला लिया है. इतना ही नहीं छोटे राजनीतिक दलों को अपने साथ लेकर अभियान को धार दे रहे है. अब हम आपको सपा के वो पांच कदम बता रहे है. जिससे चुनाव में मुकाबला बीजेपी बनाम सपा का होने जा रहा है.
1.छोटे दलों के साथ गठबंधन
सपा के प्रमुख अखिलेश यादव 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बसपा की बजाय जाति आधार वाली छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन कर रहे हैं. जिनकी ओबीसी जातियों पर पकड़ है. पूर्वांचल में राजभर, कुर्मी और नोनिया समाज के वोटों को साधे रखने के लिए अखिलेश यादव ने ओम प्रकाश राजभर की भारतीय सुहेलदेव पार्टी, संजय चौहान की जनवादी पार्टी और कृष्णा पटेल की अपना दल के साथ गठबंधन किया है.
2. दूसरे दलों के नेताओं के लिए खोले दरवाजे
इतना ही नहीं अखिलेश यादव दूसरे दलों के नेताओं की एंट्री सपा में कर रहे है. बसपा और कांग्रेस के ऐसे नेताओं के लिए अपने दरवाजे खोल दिए है. जिनके पास मजबूत जनाधार है. रामअचल राजभर से लेकर लालजी वर्मा, आरएस कुशवाहा, कादिर राणा, त्रिभुवन दत्त, केके गौतम जैसे बसपा के बड़े नेताओं को अपने साथ मिला लिया है.
3. सहयोगी दलों के साथ चुनाव प्रचार
यूपी विधानसभा चुनाव की घोषणा अभी नहीं हुई है. लेकिन, सपा प्रमुख दूसरे दलों के नेताओं के साथ अभी से रैली कर चुनावी हवा बनाने में जुटे हुए है. लखनऊ में ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव समाज पार्टी की रैली में जमकर गरजे और बीजेपी की नीतियों को निशाने पर लिया.
4. जाट-मुस्लिम समीकरण साधने में जुटे
सपा प्रमुख वेस्ट यूपी में चुनाव में अहम किरदार निभाने वाले जाट-मुस्लिम समीकरण को साधने में जुटे हुए है. इसके लिए अखिलेश यादव ने रालोद के मुखिया जयंत चौधरी के साथ हाथ भी मिला लिया है. बताया जा रहा है कि रालोद 36 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
5. शिवपाल-ओवैसी को अहमियत नहीं
अखिलेश यादव विधानसभा चुनाव 2022 में बीजेपी को ध्रुवीकरण का किसी तरह का कोई मौका नहीं देना चाहते. इसलिए अखिलेश यादव नहीं तो अपने चाचा शिवपाल यादव को कोई अहमियत दे रहे और नहीं औवेसी की पार्टी को कोई तवज्जो दे रहे हैं.
नितिन उपाध्याय, हिंदी ख़बर