परिस्थितियों की बेड़ियों ने जकड़े थे कदम, देर से सही हाथों ने थामी है कलम

परीक्षा देती महिलाएं।
उम्र के पड़ाव के भ्रम को तोड़ उम्मीदों के वो कदम आज वहां पहुंचे जहां कभी परिस्थितियों की बेड़ियों ने उन्हें जाने से रोक दिया था। हाथों में कलम और चेहरे पर आत्मविश्वास से भरा उत्साह खुद में एक कहानी बयां कर रहा था। मानो उनका मुस्कराता चेहरा कह रहा हो कि अब ये हाथ सिर्फ अंगूठा लगाना नहीं शब्दों की कारीगरी भी सीख गए हैं। अपने नौनिहालों की पहली गुरु जब खुद इम्तिहान देने पहुंची तो नजारा दिलचस्प था।
अक्षर आंचल योजना के तहत शिक्षित हो रही महिलाएं
दरअसल बिहार में मुख्यमंत्री अक्षर आंचल योजना के तहत जिले के 105 केंद्रों पर महापरीक्षा का आयोजन किया गया। सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक आयोजित इस महापरीक्षा में 11,000 महिलाओं ने हिस्सा लिया। ये वो महिलाएं थीं जो किसी न किसी कारण वश कभी विद्यालय जाकर अक्षर ज्ञान नहीं सीख पाईं।
बच्चों को पढ़ता देख सास को जागा शौक, बहू को भी लिया साथ
इसी क्रम में बिहारशरीफ के मध्य विद्यालय राणाबिगहा केंद्र पर हुई इस महापरीक्षा में बिहारशरीफ के कोसुक निवासी जमींदर मांझी की पत्नी इंद्राणी देवी ने अपनी सास पंभी देवी के साथ परीक्षा दी। इंद्राणी देवी ने बताया कि बचपन में ही शादी हो गई थी इस कारण स्कूल नहीं जा सकी। सास पंभी देवी ने बताया कि घर में पोता पोती को पढ़ते देख पढ़ने-लिखने का शौक जागा। गांव के शिक्षा सेवक मुन्ना मांझी का सहयोग मिला और हम दोनों सास-बहू पढ़ने जाने लगे। पहले अंगूठा लगाते थे लेकिन आज जब उन्हीं हाथों से हस्ताक्षर करते हैं तो बहुत अच्छा लगता है। अपना और पति का नाम लिख लेती हैं। बच्चो को थोड़ा बहुत पढ़ा भी लेती हैं। 55 साल बाद कलम पकड़कर और लोगों के बीच परीक्षा एक अलग ही एसहसास है। इसी तरह तिउरी गांव की सुनैना देवी, रूबी देवी, बेबी देवी और सुनीता देवी एक ही परिवार की बहुएं हैं। चारों को बचपन में स्कूल जाने का मौका नहीं मिला। अब दूसरों को पढ़ता-लिखता देख पढ़ाई का मन किया तो बढ़ती उम्र की झिझक छोड़ साक्षर बनीं।
रिपोर्ट: आशीष, संवाददाता, नालंदा, बिहार
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