Supreme Court: सरकार के सभी निर्णय लोकतांत्रिक हैं तो फिर कोर्ट क्यों ?

Supreme Court: भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने समलैंगिक विवाह पर फैसला सुनाते हुए कहा कि लोकतंत्र को केवल चुनावी जनादेश के संकीर्ण चश्मे से नहीं देखा जा सकता है और यदि संसद और कार्यपालिका द्वारा लिए गए सभी निर्णयों को लोकतांत्रिक माना जाता है, तो मौलिक अधिकार और कोर्ट कोई उद्देश्य पूरा नहीं कर सकेगी। यह टिप्पणी मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र सरकार की एक असहमति पर की जिसमें कहा गया था कि अदालतें एलजीबीटीक्यू और जोड़ों के अधिकारों से संबंधित मुद्दों की जांच नहीं कर सकती हैं क्योंकि यह अलोकतांत्रिक होगा।
Supreme Court: कोर्ट ने केंद्र के प्रस्ताव को किया खारिज
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने केंद्र सरकार के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया कि शीर्ष अदालत द्वारा न्यायिक समीक्षा की शक्तियों का प्रयोग नागरिकों के राजनीतिक प्रक्रियाओं में भाग लेने के अधिकार को बाधित करेगा। सीजेआई ने कहा, “संविधान संवैधानिक लोकतंत्र के ब्रह्मांड को चुनावी लोकतंत्र तक सीमित नहीं रखता है। शासन की अन्य संस्थाओं की संवैधानिक लोकतंत्र के मूल्यों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका और कार्य हैं। संविधान लोकतंत्र के संकीर्ण और प्रक्रियात्मक स्वरूप की परिकल्पना नहीं कर सकता है।
सरकार का लोकतंत्र के प्रति संकीर्ण दृष्टिकोण
मुख्य न्यायाधीश ने इस पहलू पर केंद्र सरकार के रुख को भी लोकतंत्र के प्रति संकीर्ण दृष्टिकोण बताया उन्होंने कहा, “यह लोकतंत्र की एक संकीर्ण परिभाषा है, जहां लोकतंत्र को चुनावी जनादेश के माध्यम से देखा जाता है, न कि संवैधानिक संदर्भ में। इसके अलावा, यह धारणा एक संविधान के महत्व को नजरअंदाज करता है जो लोकतांत्रिक शासन के अस्तित्व के लिए अंतर्निहित मूल्यों और शासन के नियमों को निर्धारित करता है।” कोर्ट ने इतिहास का पन्ना उलटते हुए बताया कि अदालत के हस्तक्षेप के बाद शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार माना गया था।
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