कहानी बाहुबली मुख्तार अंसारी की, जुर्म और सियासत की दुनिया में कैसे बनाया नाम

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मुख्तार अंसारी का नाम 2005 में उस वक्त पूरे देश में चर्चित हो उठा, जब बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या में उसका नाम आया।

मुख्तार अंसारी
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उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल ऐसे कई नेताओं का गवाह रहा है जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ी है। 1970 के आखिरी दशक में सड़क और रेलवे के ठेकों की लड़ाई ने पूर्वांचल की फिजा खराब कर दी। इस इलाके में माफिया पैदा होने लगे। ठेकों की गारंटी पर पहले उन्होंने अपने आकाओं के लिए बंदूके उठाई बाद में खुद राजनीति में उतर गए। 80 के दशक में इस दुनिया में एक बाहुबली ने भी एंट्री ली वो है मुख्तार अंसारी। लेकिन अब वो बांदा जेल की एक कोठरी में कैद है।

दरअसल 80 के दशक में उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल का माहौल बदल रहा था। पिछड़े पूर्वांचल में विकास के पैसे आने लगे थे। लेकिन रेलवे, सड़क, शराब, बालू खनन ही नहीं टैक्सी स्टैंड तक के ठेके वही ले पाते थे जो बाहुबली होते थे। इतना ही नहीं लोग अपने आका के एक इशारे पर मरने मारने को तैयार थे। कट्टा रखना शान समझा जाने लगा। कई लोग साइकिल पर बंदूके लेकर चला करते थे।

जिला गाजीपुर, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां अफीम, अपराधी और अफसर साथ-साथ पैदा होते हैं। पूर्वांचल के बाहूबलि मुख्तार अंसारी भी उनमें से एक है। जिनका जन्म 20 जून साल 1963 में गाजीपुर जिले हुआ था। यूपी का बाहुबली विधायक मुख़्तार अंसारी, ये वो नाम है जिसका अपराध की दुनिया में भी खौफ है और पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी सिक्का चलता है।

कहानी मुख्तार के माफिया बनने की

मुख़्तार का ऐतिहासिक गैंगवार यहीं गाजीपुर से शुरू हुआ था। खनन जैसे कई वैध-अवैध धंधों के जरिए पैसे और रसूख बनाने की जुगत में मुख्तार जुट गए थे। मुख्तार अंसारी को लगने लगा कि अगर लंबा रास्ता तय करना है तो बाहुबली बनाना ही होगा। हालांकि उनके पिता सुब्हानउल्लाह अंसारी वामपंथी नेता थे। साफ-सुधरी छवि के कारण मुख्तार अंसारी के पिता 1971 में हुए नगर पालिका चुनाव में निर्विरोध जीत हासिल की थी। जबकि उनके दादा डॉक्टर मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता सेनानी थे वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे। मुख्तार के चाचा हामिद अंसारी भारत के उपराष्ट्रपति रहे।

मुख्तार अंसारी बेहद रईस व इज्जतदार घराने से ताल्लुक रखते हैं। लेकिन पूर्वांचल में इनके नाम की तूती बोलती है। मुख़्तार अंसारी और उनके परिवार का राजनीतिक प्रभाव ग़ाज़ीपुर से लेकर मऊ, जौनपुर, बलिया और बनारस तक है। साल 1995 का दौर जब पहली बार मुख्यधारा की राजनीति में मुख्तार अंसारी की एंट्री होती है। साल 1996 में मुख्तार अंसारी को मऊ से विधायक चुन लिया जाता है।

बृजेश सिंह बनाम मुख्तार अंसारी

इसके बाद सत्ता में आने के बाद अपने धुर विरोध व जानी दुश्मन बृजेश सिंह के पीछे पहले यूपी की पूरी फोर्स को लगा दिया जाता है। वहीं दूसरी तरफ मुख्तार के अपने गुर्गे भी बृजेश सिंह के पीछे हाथ धोकर पड़े थे। साल 2002 के आतेआते दोनों ही गैंग्स का पूरे पूर्वांचल पर वर्चस्व हो गया। पूर्वांचल के सभी ठेके या तो इन दोनों माफियाओं को मिलतें या फिर इनके जानने वालों को जो इनके तहत काम करते थे। इन ठेकों के कारण दोनों गैंग्स के बीच कई बार गोलीबारी हुई।

पूर्वांचल में एक सुबह सबकुछ सामान्य चल रहा था, लेकिन अचानक अखबारों में एक खबर आती है कि पूर्वांचल के माफिया बृजेश सिंह की मुख्तार अंसारी के साथ गैंगवार में मौत हो गई। इसके बाद पूरे पूर्वांचल में एक ही माफिया बचा और वो था मुख्तार अंसारी। मुख्तार अंसारी का अब पूरे पूर्वांचल पर एकछत्र राज स्थापित हो गया। लेकिन कुछ वक्त बाद बृजेश सिंह के जिंदा होने की खबर आती है और फिर से दोनों गैंग्स के बीच झगड़ा शुरू होता है।

कृष्णानंद राय हत्याकांड

इस दौरान गाजीपुर में एक और शख्स का बोलबाला होता है। इनका नाम था कृष्णानंद राय। कृष्णानंद राय मुहम्मदाबाद सीट से मुख्तार अंसारी के भाई को हराकर विधायक बनते हैं। दरअसल 1985 से लगातार ये सीट अंसारी परिवार के कब्जे में रही। लेकिन 2002 में बीजेपी के उम्मीदवार कृष्णानंद राय ने अफजाल अंसारी को हराकर उस सीट पर जीत हासिल की थी। तभी से कृष्णानंद राय दबंग विधायक मुख्तार अंसारी के निशाने पर आ गए थे।

मुख्तार अंसारी का नाम 2005 में उस वक्त पूरे देश में चर्चित हो उठा, जब बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या में उसका नाम आया। 29 नवंबर 2005 का दिन था. बीजेपी विधायक कृष्णनंद राय गाजीपुर के भांवरकोल ब्लॉक के सियाड़ी गांव में आयोजित एक क्रिकेट प्रतियोगिता का उद्घाटन कर घर वापस लौट रहे थे, तभी बसनिया चट्टी के पास घात लगाए बैठे हमलावरों ने कृष्णानंद राय के काफिले पर एके-47 से हमला कर दिया था।

इस हमले में 500 राउंड फायरिंग की गई थी। इस दौरान कृष्णानंद राय सहित कुल 7 लोगों को गोलियों से भून दिया गया था।उस दिन सबसे बड़ा इत्तेफाक ये था कि हमेशा बुलेट प्रूफ गाड़ी में चलने वाले बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय उस दिन सामान्य गाड़ी से बाहर निकले थे। कृष्णानंद राय की हत्या के बाद पूर्वांचल जल उठा। सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया। बीजेपी के कद्दावर नेता राजनाथ सिंह ने मुलायम सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

इस हत्याकांड के दौरान मुख्तार अंसारी जेल में बंद था। लेकिन फिर भी इस हत्याकांड का मास्टरमाइंड उसे ही माना गया।कृष्णानंद राय हत्याकांड की जांच पहले यूपी पुलिस, फिर एसटीएफ और बाद में सीबीआई ने की। लेकिन गवाहों और सबूतों के अभाव में कोर्ट ने मुख्तार अंसारी समेत सभी आरोपियों को इस केस में बरी कर दिया था।