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बिहार के बाद UP में जातिगत जनगणना पर सियासत, सपा और बसपा ने उठाई मांग

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बिहार के बाद अब उत्तर प्रदेश में जातिगत जनगणना कराए जाने की मांग उठने लगी है। बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी कर दिए हैं। जातिगत जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक होने के बाद उत्तर प्रदेश की सियासत भी गर्म हो गई है। बता दें कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने यूपी में जातिगत जनगणना कराए जाने की मांग की है।

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‘जातीय जनगणना/सर्वे अविलम्ब शुरू करा देना चाहिए’

बसपा सुप्रीमो मायावती ने मंगलवार (3 अक्टूबर) को अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर एक के बाद एक तीन ट्वीट किए। मायावती ने लिखा कि ‘वैसे तो यूपी सरकार को अब अपनी नीयत व नीति में जन भावना व जन अपेक्षा के अनुसार सुधार करके जातीय जनगणना/सर्वे अविलम्ब शुरू करा देना चाहिए, किन्तु इसका सही समाधान तभी होगा जब केन्द्र सरकार राष्ट्रीय स्तर पर जातीय जनगणना कराकर उन्हें उनका वाजिब हक देना सुनिश्चित करेगी।’

‘ओबीसी के संवैधानिक हक के लम्बे संघर्ष की यह पहली सीढ़ी’

मायावती ने लिखा कि ‘बिहार सरकार द्वारा कराए गए जातीय जनगणना के आँकड़े सार्वजनिक होने की खबरें आज काफी सुर्खियों में है तथा उस पर गहन चर्चाएं जारी है। कुछ पार्टियाँ इससे असहज ज़रूर हैं किन्तु बीएसपी के लिए ओबीसी के संवैधानिक हक के लम्बे संघर्ष की यह पहली सीढ़ी है।’

‘साम्प्रदायिक दल अपने भविष्य के प्रति चिन्तित’

उन्होंने अपने एक अन्य ट्वीट में लिखा कि ‘बीएसपी को प्रसन्नता है कि देश की राजनीति उपेक्षित ‘बहुजन समाज’ के पक्ष में इस कारण नई करवट ले रही है, जिसका नतीजा है कि एससी/एसटी आरक्षण को निष्क्रिय व निष्प्रभावी बनाने तथा घोर ओबीसी व मण्डल विरोधी जातिवादी एवं साम्प्रदायिक दल भी अपने भविष्य के प्रति चिन्तित नजर आने लगे हैं।’

‘भाजपा राजनीति छोड़े और जातिगत जनगणना करवाए’

इससे पहले सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि जातिगत जनगणना 85-15 के संघर्ष का नहीं बल्कि सहयोग का नया रास्ता खोलेगी और जो लोग प्रभुत्वकामी नहीं हैं बल्कि सबके हक़ के हिमायती हैं, वो इसका समर्थन भी करते हैं और स्वागत भी।जो सच में अधिकार दिलवाना चाहते हैं वो जातिगत जनगणना करवाते हैं। भाजपा सरकार राजनीति छोड़े और देशव्यापी जातिगत जनगणना करवाए।

‘जातिगत जनगणना देश की तरक़्क़ी का रास्ता’

उन्होंने कहा कि जब लोगों को ये मालूम पड़ता है कि वो गिनती में कितने हैं तब उनके बीच एक आत्मविश्वास भी जागता है और सामाजिक नाइंसाफ़ी के ख़िलाफ़ एक सामाजिक चेतना भी, जिससे उनकी एकता बढ़ती है और वो एकजुट होकर अपनी तरक़्क़ी के रास्ते में आनेवाली बाधाओं को भी दूर करते हैं, नये रास्ते बनाते हैं और सत्ताओं और समाज के परम्परागत ताक़तवर लोगों द्वारा किए जा रहे अन्याय का ख़ात्मा भी करते हैं। इससे समाज बराबरी के मार्ग पर चलता है और समेकित रूप से देश का विकास होता है। जातिगत जनगणना देश की तरक़्क़ी का रास्ता है। अब ये निश्चित हो गया है कि PDA ही भविष्य की राजनीति की दिशा तय करेगा।

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