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‘विश्व में यश और कीर्ति का संवाहक बना संघ’

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ 100 वर्ष पूर्ण होने वाले हैं। समाजसेवी आनंद झा ने संघ के संघर्ष से सफलता तक के दौर को शब्दों में बयान किया। इस दौरान आए उतार-चढ़ाव और सहयोग-विरोध को भी उन्होंने बताया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी विशिष्ट विचारधारा और सांस्कृतिक चिंतन के बल पर सम्पूर्ण विश्व में यश और कीर्ति का संवाहक बना। अनेक विरोध, अवरोध और संकटों को पार कर संघ ने एक सफल यात्रा पूर्ण की है। सामाजिक जागरूकता, समाज के प्रति प्रतिबद्धता, सामाजिक  समरसता और राष्ट्रीय बोध से वैभव संपन्न नए भारत का निर्माण का डॉ. हेडगेवार का 100 वर्ष पहले देखा गया स्वप्न आज पूरा होता दिखाई दे रहा है।

‘सबको साथ लेकर चलना ही संघ’

उन्होंने कहा कि संघ की शक्ति इसकी विशिष्ट कार्यप्रणाली का बीज संघ की दैनिक शाखा है। सबको साथ लेकर चलना ही संघ है। संघ राष्ट्र चिन्तन, भारत माता के प्रति आदर रखने वाले सभी देशवासियों को हिन्दू मानता है। यह संपूर्ण भारतीय समाज का संगठन है जिसमें राष्ट्र के सभी पंथ सम्प्रदाय और विभिन्न संस्कृति के लोग भारतीय चेतना के एक सूत्र में बंध जाते हैं।

‘स्वयं सेवक का सपना भारत माता जगद्गुरु के रूप में हो प्रतिष्ठित’

आनंद झा कहते हैं कि यह दुष्प्रचार फैलाया जाता कि संघ मुस्लिम विरोधी है। संघ की सोच महिला विरोधी है। जबकि संघ के लिए कोई पराया नहीं है। भारत में कुछ राजनैतिक दलों ने हमेशा बांटों और राज करो की नीति का अनुसरण किया। वंचित और मुस्लिम समाज को सदैव वोट बैंक की तरह उपयोग किया। उन्हें आर्थिक और शैक्षिक स्तर से उन्हें पिछड़ा रखा गया। संघ के सेवा भारती और वनवासी कल्याण आश्रम जैसे अनुषांगिक संगठन भी अपने समाज के पिछड़ गए बंधुओं के लिए सेवारत हैं। संघ विचार से प्ररित होकर 1936 में ही ताई लक्ष्मीबाई केलकर जी ने राष्ट्र सेविका समिति का गठन कर दिया गया था, जिसमें केवल महिलाएं ही भाग लेती हैं। आरएसएस पुणे में परिवार शाखाओं का आयोजन काफी पहले शुरू कर चुका है और यूरोप, अमेरिका में ये परिवार शाखाएं मौजूद हैं। प्रत्येक स्वयंसेवक का एक ही स्वप्न है कि अपनी मातृभूमि भारत माता पुन: जगद्गुरु के पद पर प्रतिष्ठित हो और भगवा ध्वज के सानिध्य में वसुधैव कुटुम्बकम एवं सर्वे भवन्तु सुखिन: की भावना से विश्वकल्याण का मार्ग प्रशस्त करे।

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