Forest Act: जंगल की परिभाषा से छेड़छाड़ करने का नहीं है इरादा, कोर्ट को सरकार का जवाब
Forest Act: केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 में हालिया संशोधन “जंगल” के अर्थ को कमजोर नहीं करते हैं, जैसा कि 1996 के शीर्ष अदालत के फैसले में चर्चा की गई थी। टीएन गोदावर्मन मामले में अपने फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि वन भूमि की पहचान एक विशेषज्ञ समिति द्वारा की जानी है, जिसकी रिपोर्ट सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होनी चाहिए। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ को केंद्र सरकार के वकील ने सूचित किया कि नए संशोधनों को लागू करने के लिए कोई भी त्वरित कार्रवाई तब तक नहीं की जाएगी जब तक कि इसे नियंत्रित करने वाले दिशानिर्देश अधिसूचित नहीं हो जाते।
Forest Act: नहीं की जाएगी कोई सतत कार्रवाई
कोर्ट ने आदेश में कहा, “भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल श्री बलबीर सिंह ने निर्देश पर बयान दिया है कि टी.एन. गोदावर्मन मामले में इस न्यायालय के फैसले में परिभाषित जंगल के दायरे को कम करने का कोई इरादा नहीं है… उनका कहना है कि दिशानिर्देशों को अंतिम रूप दिया जा रहा है और जल्द ही अधिसूचित किया जाएगा… उन्होंने एक बयान दिया कि जंगल के संबंध में अगले आदेश तक भारत संघ द्वारा कोई सतत कार्रवाई नहीं की जाएगी, जैसा कि शब्दकोश अर्थ के अनुसार समझा जाता है “
Forest Act: सेवानिवृत अधिकारियों ने किया था कोर्ट का रूख
बता दें कि सेवानिवृत्त सिविल सेवकों के एक समूह ने वन संरक्षण अधिनियम में हाल के संशोधनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि जंगलों में मेगाप्रोजेक्ट्स को अनुमति देने से जटिल पारिस्थितिक तंत्र बाधित हो सकता है और लुप्तप्राय जीवन रूपों के अस्तित्व को खतरा हो सकता है। इसपर कोर्ट ने अक्टूबर में इस मामले पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था।
ये भी पढ़ें- Cyclone: Bay Of Bengal पर बना दवाब, पहुंच सकती है हवा की गति 100 किमी/घंटे, भारी बारिश की चेतावनी