दिल्ली: उच्च न्यायालय में “ONE NATION, ONE EDUCATION” का विरोध, सीबीएसई ने कहा पाठ्यक्रम स्थानीय संस्कृति से करेगा दूर
PIL In Delhi High Court: केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड यानी CBSE ने दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर उस जनहित याचिका (PIL) का विरोध किया है जिसमें ‘एक राष्ट्र, एक शिक्षा व्यवस्था’ की तर्ज पर पूरे देश में बारहवीं कक्षा तक एक समान शिक्षा प्रणाली की मांग की गई है। सीबीएसई ने अपने जवाब में कहा कि पूरे भारत में एक समान बोर्ड/पाठ्यक्रम का विचार “स्थानीय संदर्भ, संस्कृति और भाषा” को ध्यान में नहीं रखता है। देश में, राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा विकसित करती है जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) द्वारा दी गई सिफारिशों को ध्यान में रखती है।
स्थानीय संस्कृति राष्ट्रीय ढ़ांचा के लिए जरूरी
सीबीएसई ने कहा कि “स्थानीय संसाधनों, संस्कृति और लोकाचार पर जोर देना जरूरी है जिससे एक बेहतर राष्ट्रीय ढांचा बन सकता है। एक बच्चा ऐसे पाठ्यक्रम से बेहतर ढंग से जुड़ सकता है जो स्कूल के बाहर उसके जीवन से अधिक से जुड़ा हो या स्थानीय घटक से वो प्रभावित हो। इसलिए, पाठ्यक्रम में या शिक्षा व्यवस्था में स्थानीय संस्कृति और लोकाचार की जरूरत है।
संविधान के विपरीत है अलग-अलग पाठ्यक्रम
दिल्ली उच्च न्यायालय में वकील ए.के. उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका ने तर्क दिया कि सीबीएसई, आईएससीई और राज्य बोर्डों द्वारा अलग-अलग पाठ्यक्रम मनमाना और संविधान के विपरीत है। उन्होंने यह भी दावा किया कि मातृ भाषा में एक सामान्य पाठ्यक्रम नहीं होने से अज्ञानता को बढ़ावा मिलता है और मौलिक कर्तव्यों की समझ और प्राप्ति में देरी होती है।
समवर्ती सूची का विषय है शिक्षा
याचिकाकर्ता के दलील पर बोर्ड ने जवाब दिया कि शिक्षा भारत के संविधान की समवर्ती सूची का हिस्सा है और अधिकांश स्कूल राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में हैं। इसलिए पाठ्यक्रम तैयार करना और परीक्षा आयोजित करना संबंधित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश सरकारों का काम है। सीबीएसई द्वारा दायर हलफनामे में बताया गया है कि राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) और राज्य शिक्षा बोर्ड या तो एनसीईआरटी के मॉडल पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों को अपनाते हैं या नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क पर आधारित राज्य बोर्ड स्वयं के पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकें विकसित करते हैं।
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