लालरेमसियामी: सफलता की कहानी लिखने वालीं मिज़ोरम की पहली ओलंपियन व स्टार हॉकी खिलाड़ी
![](https://hindikhabar.com/wp-content/uploads/2023/08/BeFunky-collageॉ़ॉॉ-11-1024x570.jpg)
मेहनत और संघर्ष की जीती जागती उदाहरण हैं हॉकी खिलाड़ी लालरेमसियामी, जिनके नाम मिज़ोरम की पहली ओलंपियन और FIH राइजिंग प्लेयर का अवॉर्ड जीतने वाली पहली भारतीय महिला का खिताब भी है। लालरेमसियामी भारतीय हॉकी टीम का अहम हिस्सा हैं और हाल ही में हुई स्पेनिश फेडरेशन कप में इंडिया की जीत में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।
मिज़ोरम के छोटे से गॉंव से शिखर तक पहुंचने की राह उनके लिए आसान नहीं रही.. आइए जानते हैं लालरेमसियामी की प्रेरणादायक कहानी। मिज़ोरम के कोलसिब की रहने वाली यह स्टार खिलाड़ी एक साधारण परिवार से आती हैं। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह कभी स्पोर्ट्स में करियर बनाएंगी और देश के लिए खेलेंगी।
लेकिन उनकी ज़िंदगी ने नया मोड़ तब लिया जब उनके स्कूल में इंटर-स्कूल स्पोर्ट्स हॉकी टीम के लिए खिलाड़ियों की आवश्यकता थी। खेल के बारे में जानने के बाद इस क्षेत्र में उनकी रुचि जगी और वह आगे आकर स्कूल की हॉकी टीम में शामिल हुईं। क्योंकि हॉकी में स्टिक को पकड़ने और नियंत्रित करने को लेकर कई नियम होते हैं।
ऐसे में उन्हें प्रशिक्षण के लिए कोच मलावमी के पास भेजा गया जो कोलसिब जिले में हॉकी की कोचिंग देती थीं। इसके बाद वह रोज़ाना प्रैक्टिस के लिए जाने लगीं और उनकी कोच ने उनके स्किल व टैलेंट को पहचानकर उन्हें पूरी तरह निखारा। इसके बाद लालरेमसियामी ने राज्य की एकमात्र हॉकी अकेडमी सेरछिप जिले की थेन्ज़ॉल हॉकी अकेडमी जॉइन कर कड़ी मेहनत शुरू कर दी। अब उनका परिवार भी बेटी को स्पोर्ट्स में आगे बढ़ते देखना चाहता था।
अक्टूबर 2016 में थेन्ज़ॉल अकेडमी में टीम इंडिया में शामिल होने के लिए ट्रॉयल हुए, जिसमें उनका सिलेक्शन हो गया और वह दिल्ली की नेशनल अकेडमी प्रशिक्षण के लिए पहुँची। लेकिन उन्हें यहाँ लैंग्वेज बेरियर का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्हें हिंदी नहीं आती थी। एक बार फिर लालरेमसियामी मुश्किलों से लड़ते हुए आगे बढ़ती गईं और भारतीय हॉकी टीम में अहम जगह बना ली।
लालरेमसियामी के पिता उन्हें ओलंपिक में खेलने का सपना देखते थे। लेकिन दुर्भाग्य से साल 2020 में जब जापान के हिरोशिमा में एफआईएच सीरीज में बेटी चिली के खिलाफ सेमीफाइनल मुकाबला खेल रही थी तभी भारत में उनके पिता का निधन हो गया। ऐसे में उन्होंने देश वापस आने की जगह, टीम के साथ बने रहने को तरजीह दी। आगे चलकर उन्होंने टोक्यो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया और ओलंपिक में खेलने का अपने पिता का सपना भी पूरा किया।