Samudra Manthan : समुद्र मन्थन से निकले 14 रत्न, जानें क्यों पिया भगवान शिव ने विष ?

समुद्र मंथन

समुद्र मंथन

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Samudra Manthan : भागवत पुराण, महाभारत और विष्णु पुराण में पाई जाने वाली समुद्र मन्थन एक प्रसिद्ध हिंदू धर्म पौराणिक कथा है। समुद्र मन्थन से 14 रत्न उत्पन्न हुए थे। जिसमें अमृत और विष भी था। यह समुद्र मन्थन देवताओं और असुरों द्वारा किया गया था। उन 14 रत्नों को देवताओं और असुरों में बाटा गया।

समुद्र मन्थन से निकला विष

एक बार महार्षि दुर्वासा ने श्राप दिया, जिसके कारण स्वर्ग धन, वैभव, ऐश्वर्य आदि से हीन हो गया था। इस दिकक्त के निवारण के लिए सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने सारी बात सुन कर देवताओं को असुरों के साथ मिलकर समुद्र मन्थन करने का उपाय बताया और कहा कि समुद्र मन्थन से जो अमृत निकलेगा उसे ग्रहण करने से तुम अमर हो जाओगे। देवताओं ने भगवान विष्णु की बात मान कर असुरों के राजा बलि को बताई तो वे भी इसके लिए तैयार हो गए। इसके बाद वासुकी नाग की नेती बनाई गई और मंदराचल पर्वत की सहायता से समुद्र मन्थन किया गया। समुद्र मन्थन से सबसे पहले विष निकला, जिसकी ज्वाला से सभी देवता और असुर जलने लगे, तब उन सबने भगवान महादेव से प्रार्थना की। भगवान महादेव ने प्रार्थना को स्वीकार कर हथेली पर विष को रख कर पी गए। मगर, विष को कंठ से नीचे नहीं जाने दिया, जिसकी वजह से उनका कंठ नीला पड़ने लगा। विष पीते समय कुछ हथेली से छलक कर पृथ्वी पर गिर गया। उस गिरे हुए विष को बिच्छु, नाग और विषैले जनतुओं ने ग्रहण कर लिया।

समुद्र मन्थन के 14 रत्न

विष के बाद समुद्र मन्थन से कामधेनु गाय उत्पन्न हुई, जिसे ब्रह्मऋषियों ने रख लिया। फिर उच्चैःश्रवा घोड़ा उत्पन्न हुआ, जिसे असुरों के राजा बलि से ले लिया। उच्चैःश्रवा के बाद चार दाँत वाला ऐरावत हाथी, इसे इंद्र देव ने अपना वाहन बनाया। कौस्तुभ मणि को भगवान विष्णु ने अपने हृदय पर धारण कर लिया। कल्पवृक्ष उत्पन्न हुआ तो उसे देवताओं ने स्वर्ग में स्थापित कर दिया। फिर रंभा अप्सरा भी देवताओं के पास चली गई। उसके बाद देवी लक्ष्मी प्रकट हुईं, उन्होंने स्वयं ही भगवान विष्णु का परण किया। मदिरा की उत्पत्ति पर देवताओं की अनुमति से असुरों ने उसे ग्रहण किया। चंद्रमा को भगवान शिव ने अपने मस्तक पर धारण कर लिया। पारिजात पुष्प भी देवताओं के हिस्से में गया। इसके बाद पंचजन्य शंख उत्पन्न हुआ जो कि भगवान विष्णु को मिला। अंत में धन्वन्तरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर निकले तो असुरों ने उनसे अमृत ले लिया और आपस में ही लड़ने लगे। यह सब देख भगवान विष्णु ने विश्वमोहिनी का रूप धारण कर असुरों से अमृत लेकर देवताओं को पिला कर अमर कर दिया।

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