हिंदू मान्यता में बिना पूजा-पाठ के कोई काम नहीं होता है। धन अर्जन करना भी हिंदुओं में पूजा पाठ से ही शुरू होता है। माता महालक्ष्मी को धन की देवी माना जाता है। देशभर में महालक्ष्मी की पूजा के अलग-अलग तरीके के विधान है। सच्चे मन से यदि माता महालक्ष्मी की पूजा की जाए, तो माता भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती है
माता महालक्ष्मी की पूजा के लिए याचक को पहले खुद की शुद्धि करनी चाहिए. ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना चाहिए। महालक्ष्मी की मूर्ति को एक सिंहासन पर बिराज कर पूजा शुरू करनी होती है। माता की स्थापना इस तरह से करनी चाहिए कि पूजा करने वाले का मुख ईशान कोण या उत्तर दिशा की तरफ हो। इसके बाद एक कलश स्थापना की जाती है। एक धातु के लोटे या मिट्टी के मटके में शुद्ध जल भरकर आम के पत्ते लगाए जाते हैं और इस पर एक नारियल रखा जाता है और कलश पर स्वास्तिक चिंन्ह बनाया जाता है। कलश के नीचे चावल या गेहूं रखा जाता है। इसके बाद पवित्र जल से माता महालक्ष्मी की मूर्ति को स्नान करवाया जाता है और रोरी चंदन, अक्षत कुमकुम से माता का श्रंगार किया जाता है। माता लक्ष्मी की श्री सूक्त का पाठ किया जाता है।
सामान्य पूजा के अलावा माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए वैभव लक्ष्मी का व्रत भी किया जाता है। सामान्य तौर पर यह व्रत महिलाएं करती हैं। शुक्रवार माता महालक्ष्मी का दिन माना जाता है। इस दिन वैभव लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन महिलाओं को उपवास रखना पड़ता है। पूजा के नियम बहुत ही सरल है, कोई भी महिला खुद ही यह पूजा कर सकती है। वैभव लक्ष्मी की पूजा में चांदी या सोने के बने हुए जेवर की पूजा भी की जाती है।
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