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धर्म

जब मां ज्वालाजी ने तोड़ा अकबर का अभिमान, आज भी रहस्य बना है उसका चढ़ाया छत्र

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भारत में देवी के मंदिर हर जगह मौजूद है। जिसमें वैष्णो देवी मंदिर, मनसा देवी,  अम्बाजी माता मंदिर शामिल है। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहाँ पर माता अपने भक्तों को ज्वाला रूप में दर्शन देती है। आप में से कई लोगों ने इस मंदिर के बारे में सुना होगा और हो सकता है। कई लोग इस मंदिर में देवी के दर्शन करने भी गए होंगे। लेकिन कई लोग ऐसे भी होंगे जिन्हें इस मंदिर के बारें में जानकारी नही है। 

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इस मंदिर की खासियत है कि इस मंदिर में सदियों से माता रानी की जोत जल रही है। हैरानी की बात तो ये है कि यह जोत बिना तेल बाती के ही जल रही है और इस मंदिर में कोई भी मूर्ति नहीं है यहां से 9:00 ज्योतियों की पूजा होती है। जो कि बिना तेल बाती के सदियों से जल रही है। जब कोई प्राकृतिक आपदा आती है तो इन जोतियों का कलर में बदलाव होते हैं। ये आस्था का चमत्कार है या फिर और कुछ इसका पता आज तक वैज्ञानिक भी नहीं लगा पाए हैं और एक अनसुलझा रहस्य बना हुआ है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी। यहां माता ज्वाला के रूप में विराजमान हैं और भगवान शिव यहां उन्मत भैरव के रूप में स्थित हैं।

मंदिर का पुराणों में रहस्य मंदिर की ज्योति को बुझाने के लिए बादशाह अकबर ने भी कोशिश की थी उसने इस मंदिर की ज्योति को बुझाने के लिए नहर का निर्माण किया और सेना से पानी डलवाना शुरू कर दिया। नहर के पानी से मां की ज्योतियां नहीं बुझीं। आखिरकार अकबर को ज्वाला जी के सामने झुकना पड़ा और अकबर ने मंदिर में सोने का छत्र चढ़ाया। माता ने उसका छत्र स्वीकार नहीं किया था। यह छत्र सोने का न रहकर किसी दूसरी धातु में बदल गया था। अकबर की भेंट माता ने अस्वीकार कर दी थी। इसके बाद वह कई दिन तक मंदिर में रहकर क्षमा मांगता रह। बड़े दुखी मन से वापस गया था। कहते हैं कि इस घटना के बाद ही अकबर के मन में हिंदू देवी-देवताओं के लिए श्रद्धा पैदा हुई थी।

यहां पर ज्वाला प्राकृतिक न होकर चमत्कारिक है। अंग्रेजी शासनकाल में अंग्रेजों ने पूरा जोर लगा दिया था कि जमीन से निकलती ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाए। लाख कोशिश पर भी वे इस ऊर्जा को नहीं ढूंढ पाए थे।

देवी का यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा क्षेत्र में हैं। इसलिए इन्हें कांगड़ा देवी भी कहते हैं। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। मंदिर के गर्भ गृह के अंदर सात ज्योतियां हैं। सबसे बड़ी ज्योति महाकाली का रूप है जिसे ज्वालामुखी भी कहा जाता है। दूसरी ज्योति मां अन्नपूर्णा, तीसरी ज्योति मां चंडी, चौथी मां हिंगलाज, पांचवीं विंध्यावासनी, छठी महालक्ष्मी और सातवीं मां सरस्वती है।

इस मंदिर तक जाने के लिए भक्तों को 24 सीढ़ियां चढ़नी होती है। देवी का यह मंदिर भक्तों के बीच काफी मान्यता रखता है। यहाँ पर पूरे साल भक्तों की भीड़ लगी रहती है। यहाँ पर दिन में पांच बार देवी की विशेष आरती होती है। जिसमें प्रातः काल की मंगला आरती और रात्रि की शयन आरती बहुत ही दिव्य और आकर्षक होती है। इस आरती में सम्मिलित होने के लिए भक्त काफी इंतजार भी करते हैं।

ये भी पढे़ : महाकाल में नंदी हॉल तक घुसा पानी, रही बाबा की कृपा, नहीं रुका दर्शन-पूजन

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