जब भी संसार में प्रेम की बात होती है भगवान श्री कृष्ण औरा देवी राधा का प्रेम (Krishna Radha love Story) हमेशा सर्वोपरि होता है। देवी राधा के इस प्रेम ने संसार को यह ज्ञान दिया है किसी को पाना ही प्रेम का सही अर्थ नही है प्रेम निस्वार्थ है। प्रेम किसी सामाजिक बंधन का मोहताज नहीं होता। देवी राधा का विवाह भगवान कृष्ण से भले ही न हुआ हो पर आज भी उनका नाम एक साथ लिया जाता है। मंदिरों में उनकी मूर्तियां एक साथ रखी जाती हैं उनकी पूजा एक साथ की जाती है।
राधा को राधिका, माधवी, केशवी, रासेश्वरी और राधारानी के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है जो हिंदू धर्म में एक लोकप्रिय और पूजनीय देवी हैं। खासकर गौड़ीय वैष्णववाद परंपरा में उन्हें सर्वोपरि माना जाता है। उन्हें दिव्य प्रेम, कोमलता, करुणा और भक्ति की देवी के रूप में पूजा जाता है। वह भगवान कृष्ण की शाश्वत पत्नी हैं और उनके साथ उनके अनंत निवास गो-लोक धाम में निवास करती हैं।
वह भगवान कृष्ण की आंतरिक शक्ति है। शास्त्रों के अनुसार, वह बृज गोपियों (Krishna Radha love Story) की प्रमुख थीं, जो कृष्ण के प्रति सर्वोच्च भक्ति के लिए जानी जाती हैं। वह श्री कृष्ण के प्रति पूर्ण समर्पण (परम भक्ति) का प्रतीक हैं। और कृष्ण के प्रति निस्वार्थ प्रेम और सेवा के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित और पूजनीय हैं।
उन्हें कुछ लोगों द्वारा मानव आत्मा (अनात्मा) के रूपक के रूप में भी माना जाता है, भगवान कृष्ण के लिए उनके प्यार और लालसा को आध्यात्मिक विकास और परमात्मा के साथ मिलन के लिए मानव की खोज के प्रतीक के रूप में देखा जाता है
वर्तमान में आपको राधा और कृष्ण के मंदिर बहुत मिल जाएंगे। वृंदावन में राधारानी का भव्य मंदिर है। कृष्ण के नाम के साथ राधा का ही नाम जुड़ा हुआ है। अब सवाल यह उठता है कि राधा जब श्रीकृष्ण के जीवन में इतनी महत्वपूर्ण थीं तो उन्होंने राधा से विवाह क्यों नहीं किया? आखिर राधा कौन थीं, कैसे हुई उनकी मृत्यु? थीं भी या कि नहीं? इन सभी सवालों के उत्तर जानिए…
राधा का जिक्र महाभारत में नहीं मिलता है। भागवत पुराण (Krishna Radha love Story) में भी नहीं मिलता है। राधा का जिक्र पद्म पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। पद्म पुराण के अनुसार राधा वृषभानु नामक गोप की पुत्री थीं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार राधा कृष्ण की मित्र थीं और उनका विवाह रापाण, रायाण अथवा अयनघोष नामक व्यक्ति के साथ हुआ था
कुछ विद्वान मानते हैं कि राधाजी का जन्म यमुना के निकट स्थित रावल ग्राम में हुआ था और बाद में उनके पिता बरसाना में बस गए। लेकिन अधिकतर मानते हैं कि उनका जन्म बरसाना में हुआ था। राधारानी का विश्वप्रसिद्ध मंदिर बरसाना ग्राम की पहाड़ी पर स्थित है। बरसाना में राधा को ‘लाड़ली’ कहा जाता है।
कुछ विद्वान मानते हैं कि राधा नाम की कोई महिला नहीं थी। रुक्मणि ही राधा थीं। राधा और रुक्मणि दोनों ही कृष्ण से उम्र में बड़ी थीं। श्रीकृष्ण का विवाह रुक्मणि से हुआ था इसलिए समझो कि राधा से ही हुआ। मतलब यह कि राधा का कोई अलग से अस्तित्व नहीं है।
पुराणों के अनुसार देवी रुक्मणि का जन्म अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष (Krishna Radha love Story) में हुआ था और श्रीकृष्ण का जन्म भी कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को हुआ था व देवी राधा, वह भी अष्टमी तिथि को अवतरित हुई थीं। राधाजी के जन्म और देवी रुक्मणि के जन्म में एक अंतर यह है कि देवी रुक्मणि का जन्म कृष्ण पक्ष में हुआ था और राधाजी का शुक्ल पक्ष में। राधाजी को नारदजी के शाप के कारण विरह सहना पड़ा और देवी रुक्मणि से कृष्णजी की शादी हुई। राधा और रुक्मणि यूं तो दो हैं, परंतु दोनों ही माता लक्ष्मी के ही अंश हैं।
माना जाता है कि मध्यकाल या भक्तिकाल (Krishna Radha love Story) के कवियों ने राधा-कृष्ण के वृंदावन के प्रसंग का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया। राधा-कृष्ण की भक्ति की शुरुआत निम्बार्क संप्रदाय, वल्लभ संप्रदाय, राधावल्लभ संप्रदाय, सखीभाव संप्रदाय आदि ने की। इसका मतलब कृष्ण की भक्ति के साथ राधा की भक्ति की शुरुआत मध्यकाल में हुई। उसके पूर्व यह प्रचलन में नहीं थी। दक्षिण के आचार्य निम्बार्कजी ने सर्वप्रथम राधा-कृष्ण की युगल उपासना का प्रचलन किया था। ऐसा भी कहा जाता है कि जयदेव ने पहली बार राधा का जिक्र किया था और उसके बाद से श्रीकृष्ण के साथ राधा का नाम जुड़ा हुआ है। इससे पहले राधा नाम का कोई जिक्र नहीं था।
रामचरित मानस के बालकांड के अनुसार एक बार विष्णुजी ने नारदजी के साथ छल किया था। उन्हें खुद का स्वरूप देने के बजाय वानर का स्वरूप दे दिया था। इस कारण वे लक्ष्मीजी के स्वयंवर में हंसी का पात्र बन गए और उनके मन में लक्ष्मीजी से विवाह करने की अभिलाषा दबी-की-दबी ही रह गई थी।
रिपोर्ट- अंजलि
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