प्रणब मुखर्जी को 2012 में पीएम, मनमोहन को राष्ट्रपति बनाया जाना चाहिए था : मणिशंकर अय्यर

Mani Shankar Aiyar

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Mani Shankar Aiyar: मणिशंकर अय्यर ने अपनी पुस्तक में 2012 के राष्ट्रपति पद के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर प्रणब मुखर्जी को सरकार की बागडोर दी जाती, तो सरकार मजबूत होती।

कांग्रेस के सीनियर नेता मणिशंकर अय्यर ने अपनी नई पुस्तक में एक महत्वपूर्ण बयान दिया है। पुस्तक में कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर में राष्ट्रपति पद की रिक्ति के दौरान सरकार के फैसले पर सवाल उठाए हैं। मणिशंकर अय्यर का मानना है कि उस समय राष्ट्रपति पद के लिए प्रणब मुखर्जी को चुना जाना चाहिए था और मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति पद पर आसीन किया जाना चाहिए था। उन्होंने ये विचार अपनी आगामी पुस्तक ए मावेरिक इन पॉलिटिक्स में व्यक्त किए हैं जो राजनीति में उनके अनुभवों और विचारों को दर्शाती है।

संभावनाओं को समाप्त कर दिया

मणिशंकर अय्यर का यह मानना है कि अगर उस समय प्रणब मुखर्जी को सरकार की बागडोर सौंप दी जाती और मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति बना दिया जाता तो सरकार की स्थिति में सुधार होता। उनका कहना था कि ये फैसला ग सरकार की संभावनाओं को खत्म होने से बचा सकता था और सरकार पंगु होने से बच सकती थी। अय्यर के अनुसार इस फैसले ने संप्रग के तीसरी बार सरकार बनाने की संभावनाओं को समाप्त कर दिया।

फैसले लेने की प्रक्रिया प्रभावित हुई

मणिशंकर अय्यर ने अपनी पुस्तक में ये भी जिक्र किया कि मनमोहन सिंह की शारीरिक सेहत में गिरावट ने उनके कार्यकाल पर नकारात्मक प्रभाव डाला। मणिशंकर अय्यर ने कहा कि प्रधानमंत्री को कई बार कोरोनरी बाईपास सर्जरी करानी पड़ी और उनका शारीरिक स्वास्थ्य कभी भी पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाया जिसका असर उनके काम करने की गति पर पड़ा। इसके अलावा उन्होंने कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षता में भी स्वास्थ्य समस्याओं का जिक्र किया और बताया कि इस दौरान पार्टी में भी गतिहीनता का माहौल था जिससे शासन और फैसले लेने की प्रक्रिया प्रभावित हुई।

बीमार होने के बाद कई संकट

कांग्रेस के सीनियर नेता मणिशंकर अय्यर ने यह भी बताया कि मनमोहन सिंह के स्वास्थ्य और कांग्रेस अध्यक्ष के बीमार होने के बाद कई संकटों, खासकर अन्ना हजारे के ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ आंदोलन से प्रभावी तरीके से नहीं निपटा जा सका। ये संकट सरकार की कमजोरी को और ज्यादा उजागर करता है और ये दर्शाता है कि उस समय शासन की स्थिति कितनी कमजोर हो गई थी।

मणिशंकर अय्यर ने अपनी पुस्तक में राजनीति में अपने शुरुआती दिनों, नरसिम्हा राव के शासनकाल, संप्रग-एक में मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल और फिर अपनी स्थिति में गिरावट का भी जिक्र किया है। ये पुस्तक उनके राजनीतिक जीवन की एक विस्तृत तस्वीर प्रस्तुत करती है जिसमें उनके व्यक्तिगत अनुभवों और विचारों का खाका खींचा गया है।

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