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अखिलेश-जयंत का किसान ‘प्रेम’, बीजेपी ने जगाया पलायन का ‘भूत’

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देश में विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा चुनाव लेकिन ऐसा नहीं हो सकता कि कोई न कोई मुद्दा बाहर न निकले. चुनावी मौसम में कुछ सोए हुए मुद्दे ऐसे जाग जाते है कि वह चुनावी हवा का रूख किसी भी ओर मोडने का माद्दा रखते है. अब यूपी में चुनावी समर चरम पर है. पक्ष और विपक्ष एक के बाद एक सियासी दांव चल रहे है. शुक्रवार को वेस्ट यूपी के बहुचर्चित जिले मुज़फ्फ़रनगर में सपा और रालोद के अध्यक्षों ने संयुक्त प्रेस वार्ता का आयोजन किया. प्रेस वार्ता में अखिलेश यादव ने किसानों को लेकर चिंता जाहिर की और कहा कि वह किसानों के सम्मान के लिए रालोद के साथ मिलकर सरकार बनाने जा रहे हैं.

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बीजेपी पर हमलावर हुए अखिलेश-जयंत

इस संयुक्त प्रेस वार्ता में किसानों को लेकर सपा और रालोद अध्यक्ष लगातार बीजेपी पर हमलावर हुए और किसान प्रेम दिखाते रहे. अखिलेश यादव ने वादा करते हुए कहा कि गठबंधन की सरकार बनने पर किसानों का भुगतान 15 दिन में किया जाएगा. बीजेपी की तरह चौधरी चरण सिंह के सपने को नहीं तोड़ा जाएगा और प्रदेश में कोई भी काला कानून लागू नहीं किया जाएगा. हम दोनों किसान के बेटे हैं.

जाट मतदाताओं को साधने में जुटी रालोद-सपा

सपा रालोद दोनों दल वेस्ट यूपी में किसान प्रेम दिखाकर जाट मतदाताओं का साधने में लगे हुए है. इसके इतर वेस्ट यूपी में इस चुनावी मौसम में बीजेपी ने फिर से पलायन के भूत को जगाया है. बीजेपी वेस्ट यूपी में लगातार जाट बहुल इलाकों में कैराना पलायन और मुजफ्फरनगर दंगों के दंश को याद दिला रही है. इतना ही नहीं बीजेपी आंकडों की बाजीगरी भी दिखा रही है. जाट इलाकों में जा जाकर आंकड़ों के जरिए सपा सरकार में हुए अत्याचार की याद दिला रही है.

बीजेपी का सीधे तौर पर कहना है कि साल 2014 के बाद वेस्ट यूपी में बहुत बदलाव किया और 2017 में योगी सरकार बनने के बाद जाट समाज को अलग ही सम्मान दिया गया. वेस्ट यूपी ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश को दंगा मुक्त कर शांति को स्थापित किया गया. सपा सरकार ने जाट समाज पर अत्याचार किया है और अब चुनाव के समय समाज को न्याय दिलाना याद आ रहा है.

रालोद को मिलेगा सहानुभूति का फायदा

अब ऐसे में देखना होगा कि क्या जाट मतदाता फिर से साल 2014, 2017 और 2019 की तरह बीजेपी के ठाठ कराएगा या फिर से अपनी पार्टी रालोद की झोली में अपना वोट डालेगा हालांकि, अभी कुछ भी कयास लगाना मुश्किल है क्योंकि बीते साल रालोद के मुखिया चौधरी अजित सिंह अनंत यात्रा पर चले गए, ऐसे में जाट मतदाताओं के मन में उपजी सहानुभूति का भी रालोद को फायदा मिल सकता है.

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