2024 Lok Sabha Election: जारी है विपक्ष की राजनीति, आखिर क्या है इनकी रणनीति?
2024 लोकसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीती पार्टियों ने एड़ी-चोटी का जोर लगाना शुरू कर दिया है। वहीं, दूसरी ओर यूपी-बिहार में जातियों की भी चर्चा भी गर्मा गई है। दोनों राज्यों के नेताओं ने आपस में महागठबंधन की गोलबंदी शुरू कर दी है। भाजपा को मात देने के लिए आखिर क्या है इन पार्टियों की रणनीति आपको बताते हैं इनका पूरा गुणा-गणित।
अगड़ा बनाम पिछड़ा पर राजनीतिक भूचाल आया हुआ है, जिसको आगे बढ़ाने का काम विपक्ष के वो चेहरे कर रहे हैं जो मिशन 2024 में बीजेपी को मात देने का गुणा गणित जोड़ रहे हैं। बता दें कि यूपी में समाजवादी पार्टी और बिहार में महागठबंधन की पार्टियां जाति की गोलबंदी करती हुई नजर आ रही हैं। ऐसे में हिंदुत्व वाले एजेंडे की काट के लिए अब अगड़े बनाम पिछड़े के नारे को बुलंद करने की कोशिश लगातार जारी है।
देश संविधान के हिसाब से चलता है – तेजस्वी यादव
संविधान और हिस्सेदारी की बात बिहार और उत्तर प्रदेश में एक सुर में हो रही है। इसके पीछे मंडल वाली वो राजनीति है, जिसने 1990 से बाद से 2014 तक इन राज्यों में लालू-नीतीश-मुलायम और मायावती जैसे क्षत्रपों को ताकत दी। बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने कहा कि जगदेव बाबू का नारा है, ‘100 में 90 शोषित हैं, और 90 भाग हमारा है’। उन्होनें कहा कि इसमें सामाजिक न्याय की बात की गई है, संविधान में सबको बराबरी का हक है और देश संविधान के हिसाब से चलता है।
इस वजह से क्षेत्रीय क्षत्रपों की ताकत हुई कमजोर
बिहार के समिकरण की अगर बात करें तो 2014 में बीजेपी ने विकास, राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व का ऐसा राजनीतिक समीकरण बनाया, जिसने जातियों की दीवार ढ़हा दी। इससे क्षेत्रीय क्षत्रपों की ताकत कमजोर हुई। अब बयानबाजी के जरिए फिर से उसी अगवा पिछड़ा वाली राजनीति को मजबूत करने की कोशिश हो रही है। दरअसल, बिहार की आबादी में सवर्ण वोट 14.5%, ओबीसी 31%, अति पिछड़ा 21%, दलित 16% और अन्य 17.5% हैं। और यही वजह है कि बिहार में तेजस्वी 90 बनाम 10 की बात कर रहे हैं।
धर्म के ठेकेदार शूद्र का करते हैं अपमान- स्वामी प्रसाद मौर्य
वहीं उत्तर प्रदेश की स्थिति ये है कि यूपी में सवर्ण वोट 19%, ओबीसी 43%, दलित 21 % और अन्य 17% हैं। यूपी में ओबीसी मतदाता समाजवादी पार्टी का कोर वोटर रहा है, लेकिन यादवों को छोड़कर बीजेपी ने दूसरे ओबीसी वोटर्स को अपने साथ जोड़ा है। इसलिए समादवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान का विरोध होने के बाद भी अखिलेश ने उन्हें पार्टी में प्रमोशन दिया, जिसके बाद मौर्य अपने एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं। इन सब के बीच स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि जो यहां धर्म के ठेकेदार बने बैठे हैं वो शूद्र, महिला, आदिवासी, पिछड़ों का अपमान करते हैं। कुछ लोग ऐसा करने को अपना धर्म समझते हैं। हमला बोलते हुए उन्होनें कहा कि बीजेपी भी ऐसे ही लोगों के साथ खड़ी है।
तो इसलिए दिल्ली जाने के लिए बिहार और यूपी है जरूरी
अब आपको बताते हैं कि आखिर दिल्ली जाने के लिए बिहार और यूपी जरूरी क्यों है? तो बता दें कि दिल्ली का रास्ता जो है वो यूपी और बिहार से होकर गुजरता है। बिहार की 40 और यूपी की 80 यानी 120 लोकसभा सीटों में से 2019 में बिहार में एनडीए ने 39 सीटें जीती थी, तो वहीं यूपी में एनडीए को 66 सीटों पर जीत मिली। यानी कुल 120 सीटों में से एनडीए ने 105 सीटें जीती थीं।
हालांकि उस वक्त बिहार में नीतीश कुमार बीजेपी के साथ थे। आज नीतीश महागठबंधन में हैं, और यूपी विधानसभा चुनाव में अपना प्रदर्शन सुधारने के बाद अखिलेश अब 2024 पर नजर टिकाए हुए हैं। इसलिए चंद्रशेखर, स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेता अपने बयानों से कमंडल वर्सेज मंडल वाली लाइन को बड़ा कर रहे हैं। ऐसे में क्या नितीश कुमार यूपीए में शामिल होंगे या नहीं? ये एक बड़ा सवाल है।
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