क्यों खेली जाती है बनारस में चिता की राख से होली?, जानिए इस अनूठी परंपरा का आध्यात्मिक महत्व

Masan Ki Holi 2025
Masan Ki Holi 2025 : होली का त्योहार आते ही लोगों में एक अनोखा उत्साह छा जाता है। हमारे देश में होली मनाने के कई विभिन्न तरीके हैं, और हर तरीके का अपना विशेष महत्व है। इस दिन लोग एक-दूसरे को रंग और गुलाल लगाकर खुशियां मनाते हैं। वहीं उत्तर प्रदेश के वाराणसी में होली का त्योहार एक विशेष तरीके से मनाया जाता है। यहां होली से कुछ दिन पहले काशी विश्वनाथ मंदिर और मणिकर्णिका घाट पर चिता की राख से होली खेली जाती है, जिसे मसान होली के साथ- साथ ‘भस्म की होली ‘के नाम से भी जाना जाता है।
बता दें कि मसान की होली में नागा साधुओं संग आम लोग भी होली खेलते हैं। ऐसा कहा जाता है, कि इस दौरान महादेव खुद अघोरियों के साथ होली खेलने आते हैं। तो आइए जानते हैं, बनारस के किन घाटों पर मसान की होली खेली गई और इसके बाद कैसे होली खेली जाती है।
सबसे पहले हरिश्चंद्र घाट पर खेली गई बनारस की होली
मसान की होली खेलने की शुरुआत सोमवार (10 मार्च) को हरिश्चंद्र घाट पर हुई थी, जिसमें नागा साधुओं संग आम लोगों ने होली खेली। इस होली उत्सव में दूर-दूर से आए लोगों ने शिरकत की थी। कुछ लोग तो मसान होली में पहली बार शामिल हुए थे, जहां उन्होंने चिता की राख से होली खेलने का अनुभव लिया था।

मसान की होली की परंपरा
बनारस में मसान की होली एक प्राचीन परंपरा है, जिसे महादेव भक्त सदियों से निभाते आ रहे हैं। यह अनूठी होली मणिकर्णिका घाट पर खेली जाती है, जहां जलती चिताओं की राख से होली खेलकर आत्मा के शुद्धिकरण का विश्वास किया जाता है।
परंपरा के अनुसार, स्थानीय श्रद्धालु, नागा साधु और अघोरी इस खास अवसर पर मणिकर्णिका घाट पर इकट्ठा होते हैं और चिता की राख से एक-दूसरे को रंगते हैं। इस अनूठे उत्सव की शुरुआत मसान मंदिर में भव्य आरती से होती है, जिसके बाद भक्तगण डमरू की गूंज और मंत्रोच्चारण के बीच शिवलिंग पर राख चढ़ाते हैं।
यह परंपरा शिवभक्तों की आस्था और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक है
मसान की होली के दौरान बनारस की गलियों और घाटों पर ढोल-नगाड़ों की गूंज और भक्तों की उत्साहपूर्ण झूम आपको देखने को मिलेगी। यह परंपरा सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि शिवभक्तों की आस्था और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक है, जो बनारस को अपनी दिव्यता और रहस्यमयता से और भी खास बनाती है।
मसान होली के लिए प्रसिद्ध है मणिकर्णिका घाट
मोक्ष की नगरी के नाम से मशहूर बनारस में लोग मौत को भी आशीर्वाद की तरह गले लगाते हैं। यहां गंगा नदी के घाटों पर अग्नि हमेशा जलती रहती है। बनारस का मुख्य श्मशान घाट मणिकर्णिका घाट लोगों की मृत्यु के बीच इस अनूठी परंपरा को सदियों से निभा रहा है। यहां आपको नागा साधु बाघ की खाल में लिपटे, मुंडमाला से सजे, जीवन के आखिरी रंग यानी राख के रंग से होली खेलते, भांग के नशे में चूर नजर आते हैं।

मसान की होली की तारीख
मसान होली 10 मार्च को बाबा किनाराम आश्रम से शुरू होकर हरिश्चंद्र घाट और 11 मार्च को महाश्मशान नाथ मंदिर से शुरू होकर मणिकर्णिका घाट पर सुबह 10 बजे से मनाई गई थी। बता दें, मसान होली हर किसी के लिए नहीं है। यह कोई ऐसा त्योहार नहीं है जिसमें आप सेल्फी या मौज-मस्ती के लिए जाते हैं। यह उन लोगों के लिए एक अनुभव है जो अस्तित्व के गहरे अर्थ की तलाश करते हैं और आध्यात्मिक दुनिया को समझना चाहते हैं।
मसान की होली के बाद कैसे खेली जाती है बनारस में होली
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार होली 13 मार्च को सुबह 10:35 बजे शुरू होगी और इसका समापन 14 मार्च को दोपहर 12:23 बजे होगा। ऐसे में मसान की होली के बाद बनारस में होली काफी जमकर सेलिब्रेट की जाती है। मसान की होली के बाद आपको बनारस के प्रसिद्ध घाटों पर रंगों से होली खेलते हुए लोग दिख जाएंगे, कई जगह तो फूलों से भी होली खेली जाती है।
मसान की होली क्यों है प्रसिद्ध
अन्य पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन भगवान शिव ने मृत्यु के देवता यमराज पर विजय प्राप्त की थी। माना जाता है कि विजय के प्रतीक के रूप में, उन्होंने चिता की राख से होली खेली थी। तब से, यह दिन मसान की होली के रूप में मनाया जाता है। मसान की होली इस बात का प्रतीक है कि जीवन और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यह परंपरा भगवान शिव के प्रति सम्मान और मृत्यु पर उनकी विजय का प्रतीक है।
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