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Lakshmi Sehgal: कैप्टन के नाम से क्यों मशहूर रहीं डॉ लक्ष्मी

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भारत की आजादी में अहम योगदान देने वाली महिला स्वतंत्रता सेनानियों में एक नाम कैप्टन लक्ष्मी सहगल का भी है, जो पेशे से एक डॉक्टर, भारतीय सैनिक और स्वतंत्रता सेनानी थी। पेशे से डॉक्टर रहीं लक्ष्मी सहगल ने आजाद हिंद फौज में सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित रानी लक्ष्मीबाई रेजिमेंट का नेतृत्व किया था। कैप्टन लक्ष्मी के नाम से मशहूर डॉक्टर लक्ष्मी सहगल को फौज में कर्नल का ओहदा भी मिला, लेकिन और कई संवेदनशील अवसरों पर सेवा को वे हमेशा कैप्टन के नाम से ही जानी गईं। आजादी के बाद भी कैप्टन डॉ लक्ष्मी सहगल राजनैतिक रूप से सक्रिय रह कर भी अपनी चिकित्सा सेवाएं जारी रखी और बाद में पद्मभूषण से भी सम्मानित की गईं।

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लक्ष्मी स्वामीनाथन का जन्म 24 अक्टूबर 1914 को मद्रास में हुआ था। देशभक्ति का जज़्बा उन्हें मां से मिला था जो खुद एक सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर जानी जाती थीं। लक्ष्मी स्वामीनाथन ने मद्रास मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री हासिल करने के बाद महिला रोग विशेषज्ञ के रूप में आगे की शिक्षा प्राप्त की इसके बाद उन्होंने चेन्नई के एक अस्पताल में अपनी सेवाएं देना शुरू कर दी।

इसके बाद जल्दी ही डॉ लक्ष्मी को दो साल के विदेश जाने का मौका मिला और 1940 में ही सिंगापुर पहुंच गईं। यहां उन्होंने  प्रवासी भारतीयों के लिए एक चिकित्सा शिविर लगाया और गरीब भारतीयों के लिए मुप्त इलाज करने लगीं। उन्होंने घायल द्वितीय विश्व युद्ध बंदियों की काफी सेवा की और उनके संपर्क में कई क्रांतिकारी भी आए जो सिंगापुर में सक्रिय थे।

इसी बीच युद्ध की जंग में सिंगापुर ब्रिटेन के कब्जे से जापान के पास चला गया और जब 1943 में सुभाष चंद्र बोस से मिलने पर लक्ष्मी सहगल ने आजादी की लड़ाई में उतरने की अपनी दृढ़ इच्छा जाहिर की। डॉ लक्ष्मी के समर्पण और सेवा भाव को देखते हुए ही नेताजी ने ‘रानी लक्ष्मीबाई रेजिमेंट’ की घोषणा की। यह डॉ लक्ष्मी के प्रयासों और नेतृत्व गुणों का नतीजा था कि रानी लक्ष्मीबाई रेजिमेंट में 500 से ज्यादा महिलाएं जुड़ गईं और वे कैप्टन के नाम से मशहूर भी हुईं। उनकी इच्छा शक्ति और साहस के कारण उन्हें ‘कर्नल’ का पद दिया गया। एशिया में पहली बार किसी महिला को यह पद प्रदान किया गया था। लेकिन वे कैप्टन लक्ष्मी के नाम से भी जानी जाती रहीं।

बर्मा को आजाद कराने के प्रयास के दौरान ब्रिटिश सेना ने कैप्टन लक्ष्मी को गिरफ्तार कर लिया जिसके बाद वे 1946 तक वह बर्मा की जेल में रही। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के बढ़ते दबाव के चलते उन्हें रिहा कर दिया गया। 1947 में लाहौर में प्रेम कुमार सहगल से उनका विवाह हो गया और वे कैप्टन लक्ष्मी सहगल हो गईं।

आजादी के बाद भी एक डॉक्टर के रूप में उनका सेवा भाव ही सर्वोपरि रहा। भारत पाक विभाजन की वजह से देश आए शरणार्थियों की जी जान से सेवा की और सामजिक कार्यकर्ता के रूप में भी काम करती रहीं। 1971 में उन्होंने वे मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ग्रहण करते हुए राज्यसभा तक पहुंची। बांग्लादेश के आजादी के समय उन्होंने कोलकाता में आ रहे शरणार्थियों की भी चिकित्सकीय सेवा की।

कैप्टन लक्ष्मी सहगल 1981 में ‘ऑल इण्डिया डेमोक्रेटिक्स वो वुमंस एसोसिएशन’ की संस्थापक सदस्य बनी। उन्होंने 1998 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया। साल 2002 में में उन्होंन वाममोर्चा की ओर से राष्ट्रपति पद का चुनाव भी लड़ा था। साल 2012 में उन्होंने दुनिया का अलविदा कहा.

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