सड़क पर उतरे किसान, क्या है विवाद की जड़?

Kisan Andolan

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Kisan Andolan: उत्तर प्रदेश के किसान 1997-2008 के भूमि अधिग्रहण से जुड़ी अपनी मांगों को लेकर फिर सड़कों पर उतर आए हैं। उनकी प्रमुख मांग है कि अधिग्रहित भूमि का 10% मूल मालिकों को वापस दिया जाए और मुआवजा बढ़ाया जाए। नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों द्वारा भूमि अधिग्रहण के बाद से किसानों का विरोध जारी है, लेकिन वे आरोप लगाते हैं कि सरकार ने अब तक उनकी मांगों को अनदेखा किया है।

किसानों का प्रदर्शन 25 नवंबर को नोएडा प्राधिकरण के बाहर शुरू हुआ और 2 दिसंबर को दिल्ली-नोएडा बॉर्डर पर हजारों किसान जुट गए। इस विरोध में संयुक्त किसान मोर्चा, भारतीय किसान परिषद और अन्य संगठनों ने भाग लिया। किसानों ने आरोप लगाया है कि अधिग्रहण दर मौजूदा बाजार मूल्य से चार गुना कम है। इसके अलावा, वे विस्थापित परिवारों को भूखंड, बढ़ी हुई मुद्रास्फीति के अनुसार 64.7% अधिक मुआवजा, बच्चों को शिक्षा संस्थानों में आरक्षण और मुफ्त बिजली-पानी जैसी सुविधाएं भी मांग रहे हैं।

आंदोलन तेज करने की चेतावनी

सरकार ने पहले एक समिति बनाई थी और सिफारिशें भी की थीं, लेकिन किसानों का कहना है कि उन्हें कभी लागू नहीं किया गया। प्रमुख मांगों में से एक गौतमबुद्धनगर में मूल मालिकों को 10% भूमि लौटाने की है, जिसे सरकार ने अब तक स्वीकार नहीं किया।

राज्य सरकार ने हाल ही में आंदोलन का समाधान निकालने के लिए एक नई समिति का गठन किया है। अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास विभाग के प्रमुख सचिव अनिल कुमार सागर के नेतृत्व में बनी इस समिति को एक महीने में रिपोर्ट और सिफारिशें सौंपने का निर्देश दिया गया है।

किसानों का कहना है कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो वे आंदोलन तेज करेंगे। प्रदर्शनकारी किसानों को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का भी समर्थन मिला है। उन्होंने कहा कि किसानों को उनकी जमीन के लिए लड़ने पर मजबूर होना देश के विकास के लिए चिंताजनक है। दूसरी ओर, पंजाब के किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य से जुड़ी मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

सरकार और किसानों के बीच इस टकराव ने एक बार फिर कृषि और भूमि अधिग्रहण जैसे मुद्दों पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

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