
Caste Based Discrimination: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को जेल में बंद कैदियों के बीच जाति आधारित भेदभाव को बढ़ावा देने को लेकर केंद्र सरकार और ग्यारह राज्यों को नोटिस जारी किया। इसके लिए कोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया गया है कि इन राज्यों में जेल मैनुअल कैदियों के बीच जाति-आधारित भेदभाव को बढ़ावा दिया जाता हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की बेंच ने उठाए गए मुद्दे की गंभीरता को स्वीकार किया और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से इस संबंध में न्यायालय की सहायता करने के लिए कहा।
Caste Based Discrimination: केंद्र समेत राज्यों को निर्देश
कोर्ट ने निर्देश दिया, “यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसे उठाया गया है। हम एसजी मेहता से इस अदालत की सहायता करने का अनुरोध करते हैं। सभी राज्य मैनुअल को एक सारणीबद्ध चार्ट में रखा जाए।” एसजी मेहता ने भी स्थिति को ‘unacceptable’ बताया और इससे निपटने के लिए संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता जताई। इस संबंध में कोर्ट के समक्ष याचिका पत्रकार सुकन्या शांता ने दायर की थी, जिन्होंने दलील दी थी कि जेल की बैरकों में जाति-आधारित भेदभाव जारी है।
Caste Based Discrimination: भेदभाव को खत्म करने की मांग
याचिका में विभिन्न राज्य जेल मैनुअल में पाए गए भेदभावपूर्ण प्रावधानों को निरस्त करने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील एस मुरलीधर ने आरोप लगाया कि ऐसे उदाहरण हैं जहां दलितों को अलग-अलग जेलों में कैद किया गया है, जबकि अन्य जातियों के व्यक्तियों को अलग-अलग क्षेत्रों में रखा गया है। उन्होंने कहा, “इस तरह का जाति आधारित भेदभाव जेल में कदम रखने के बाद से ही होता है।” इस संबंध में कोर्ट ने केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, ओडिशा, झारखंड, केरल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र को नोटिस जारी किया।
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