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पुतिन से मिलने जा रहे एस. जयशंकर, भारत और रूस के बीच संबंध होंगे मजबूत

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अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों के ऐतराज के बाद भी रूस के साथ भारत अपने संबंधों को लेकर पीछे हटने को तैयार नहीं है। इसी कड़ी में अब विदेश मंत्री एस. जयशंकर रूस का दौरा करने वाले हैं। वह 8 नवंबर को रूस जाएंगे, जहां अपने समकक्ष सेरगे लावरोव से मुलाकात करेंगे। रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जाखारोवा ने गुरुवार को मॉस्को में कहा कि अगले महीने लावरोव की जयशंकर से मुलाकात होने वाली है। इस दौरान दोनों नेता रूस और भारत के संबंधों के अलावा इंटरनेशनल एजेंडा पर भी बात करेंगे। हालांकि जाखोवा ने विस्तार यह नहीं बताया कि दोनों के बीच किन मुद्दों पर बात होगी।

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इस यात्रा को लेकर अब तक भारत की ओर से आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है। हालांकि पूरे मामले की जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि जयशंकर की यह यात्रा थोड़ी लंबी होगी। इस दौरान वह लावरोव एवं अन्य रूसी अफसरों से मुलाकात करेंगे। यह जानकारी ऐसे समय में सामने आई है, जब इस बात के कयास लग रहे थे कि दोनों देशों के बीच इस बार सालाना समिट नहीं होगी। समिट को लेकर अब तक दोनों तरफ से कुछ भी नहीं कहा गया था। कुछ महीने पहले यह बात सामने आई थी कि रूस में ही 2022 में समिट का आयोजन होना है।

इस बीच व्लादिमीर पुतिन और पीएम नरेंद्र मोदी की नवंबर में एक बार फिर से मुलाकात हो सकती है। सितंबर में उज्बेकिस्तान में हुई एससीओ समिट के दौरान दोनों नेता मिले थे। उसके बाद एक बार फिर से इंडोनेशिया के बाली में आयोजित हो रहे जी-20 समिट में वह एक बार फिर से मिल सकते हैं। बता दें कि कोरोना के बाद से पुतिन ने विदेश यात्रा कम ही की हैं, लेकिन बीते साल वह सालाना समिट में शामिल होने के लिए भारत आए थे। इसके अलावा विदेश मंत्री लावरोव भी इसी साल अप्रैल में भारत आए थे। यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद लावरोव का यह दौरा अहम था क्योंकि दुनिया के कई देश भारत से अपील कर रहे थे कि वह इस मामले में दखल दे और रूस के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में मतदान करे।

गौरतलब है कि यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत की ओर से रूस की कोई तीखी आलोचना नहीं की गई है। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी संस्थाओं में वोटिंग के दौरान भी भारत ने दूरी ही बनाई है। इसे अमेरिका और यूरोप के कई देशों ने भारत की ओर से रूस के समर्थन के तौर पर देखा है। गौरतलब है कि भारत ने इन दिनों रूस से बड़े पैमाने पर सस्ते तेल की खरीद भी की है, जबकि अमेरिका और यूरोप ने इस पर ऐतराज भी जाहिर किया था। हालांकि भारत ने दोटूक कहा था कि हम अपने देश के हित के अनुसार ही फैसला लेंगे।

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